Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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माँ, बेटा और बहू

 

माँ अपने बेटे को नौ महिने गर्भ में रखकर उसे जीवन देती है। उसे पाल पोषकर उसकी शारीरिक बौद्धिक और मानसिक विकास करती है। ममतामयी माँ और अधिकतर आज्ञाकारी बेटे के बीच में अटूट सम्बन्ध स्थापित हो जाते हैं। एक दूसरे के प्रति प्रेम और त्याग की भावना कूट-कूट कर भरी रहती है। माँ से पिता की उम्र ज्यादा होती है, उसलिये माँ अपने लड़के को देखकर अपने आप को अधिक सुरक्षित महसूस करती है। माँ अपने बेटे को देखकर फूली नहीं समाती। बेटे माँ के प्यार और दुलार के द्वारा ही अपना सर्वांगीण विकास कर पाते हैं। माँ का बेटे के प्रति स्नेह अत्यन्त निश्छल, अत्यन्त निर्मल और बिना किसी स्वार्थ की भावना वाला होता है। संसार में अचल प्रेम के साथ उपकार करने वाला, मनुष्य को शक्तिशाली बनाने वाला सदुपदेश देकर उचित मार्ग पर अग्रसर करने वाला, बेटे को शक्तिशाली बनाने वाला माता के अतिरिक्त कोई दूसरा नहीं। बेटा बाप से ज्यादा माँ को प्यार करता है क्योंकि पैदा होने से लेकर जवानी तक उसका सम्पर्क माँ से अधिक रहता है। माँ अपने बेटे को इतना ज्यादा प्यार करती है कि वह पुत्र का वियोग सहन नहीं कर सकती ।
जवान बेटे को अपना भविष्य सुधारने के लिए विवाह करना पड़ता है। बेटे की बहू अपने पति के साथ जीवन यापन करने में ही परमसुख अनुभव करती है, एवं वह निरन्तर उसके पास रहना चाहती है। बेटे की शादी के बाद माँ चाहती है कि बेटा माँ के पास रहे और उसकी हर बात माने लेकिन बेटा अपनी बहू के साथ अधिक समय बिताना चाहता है और अपनी पत्नी की हर बात को ज्यादा मानने लगता है। पति-पत्नी का सम्बन्ध भावभूमि पर होता है। उसमें प्रेम की उनम्यता होती है और एक को दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता। पत्नी पति की अर्धांगिनी होती है। पति का पत्नी के साथ अधिक रहने से माता से मोह कम हो जाता है और माँ की बात की ओर कम ध्यान देता है। ऐसी परिस्थिति में माँ सोचती है कि बेटे को बहू ने उससे छीन लिया है और वह बहू को बात-बात पर कोसती रहती है। ऐसी परिस्थिति में बेटे की भूमिका को सफलता से निभाने के लिये अपनी बुद्धि का सहारा लेना चाहिए। माँ की हर बात में पक्ष लेने पर बहू नाराज हो जायेगी और बहू का पक्ष लेने में माँ से सम्बन्ध बिगड़ जायेंगे। बेटे के लिए माँ को और बीबी दोनों को खुश रखना एक समस्या का रूप धारण कर लेता है। ऐसी परिस्थिति में बेटे को एक तरफा पक्ष नहीं लेना चाहिये। जिससे दूसरी ओर का सम्बन्ध टूट न जाये। बेटे को समन्वयक होशियारी से काम लेना चाहिए, जिससे माँ और बहू दोनों को खुश रख सके।
सास और बहू में अक्सर छोटी-छोटी बातों को लेकर झगड़े होते रहते है। बहू की हमेशा चुप रहना चाहिए जिससे सास के अहं को ठेस न पहूँचे। सास को भी छोटी-छोटी बातों को लेकर झगड़ा या जिद नहीं करना चाहिए। नये जमाने को परिवर्तनों को ध्यान में रखते हुए अपने आप को नये माहौल में ढालकर रहना चाहिए। सास और बहू एक ही छत के नीचे 24 घंटे रहती है। बहू अपनी सास को अपनी माँ के समान समझकर उसकी छोटी-मोटी बातों कों सहन करना चाहिए। दोनों ही हिलमिलकर काम करें। एक दूसरे की सहायता दे, एक दूसरे को समझकर बात करें, एक दूसरे को सहन करे और वातावरण को दूषित न होने दे तो घर के ‘‘मुखिया‘‘ (बेटे) को शान्ति और खुशी से जीवन बिताने का मौका मिलेगा। घर का चहुँमुखी विकास अवश्य होगा। बेटा, बहू और माँ के बीच में सही तालमेल हो तो जीवन सुन्दर लगने लगेगा।
माँ, बेटा और बहू त्रिभूज के तीन शीर्ष बिन्दू है और त्रिभूज परिवार रूपी भवन की नींव है। इस त्रिभूज की तीनों भुजाएं माँ-बेटा, बेटा-बहू और सास-बहू के बीच में सम्बन्ध की द्योतक है। इन तीनों के आपस के सम्बन्धों में समन्वय हो तो परिवार में सुख और शान्ति होगी और परिवार का लगातार विकास होगा। प्रत्येक परिवार की समृद्धि से समाज और देश की सर्वव्यापी उन्नति होगी और सम्पूर्ण दुनिया स्वर्ग बन जायेगी।

 

 

 

(सत्यनारायण पंवार)

 

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