बरसात की फुहार
और यह मौसमी बयार
छुप छुप के देखतीं हैं
सजन तेरा मेरा प्यार
सोंध माती की उसास
मन में भरे हुलास
प्रस्फुटित हो प्रेम
जहाँ पा रहा विस्तार
अंबर तले का साथ
पुनि मधुर वह संवाद
पत्तों पर बूँदें गिरकर
करती प्रेम का मनुहार
सृष्टि थके ना निहार
आज प्रेम का सिंगार
रिस रही हर बूंद जनु
मधुर प्रेम की रस धार
सत्यनारायण सिंह
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