Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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लगती छबि मीत !

 

लगती छबि मीत !
लगती छबि मीत मुझे मन भावन।
मन चंद चकोर समान लुभावन।।
मन प्रीत रिसे सुख पाय सुहावन।
अँखियाँ बरसे झिमके जिमि सावन।१।

 

 

चुपके पहले पिय नैन लड़ावत।
फिर नैन लडे हिय गेह बसावत।।
बस जात हिया फिर नींद चुरावत।
सुख चैन चुरा दिन रैन जगावत।२।

 

 

मन बालगुडी नभ माहिं उडावत।
कबहूँ मन की पिय नाँव चलावत।।
रस की बतियाँ मन में छलकावत।
फिर क्यूँ छलिया मन मोर पुकारत।३।

 

 

- सत्यनारायण सिंह

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