Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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नव दुर्गा

 

भक्ति नवधा से समाहित, शुद्ध हो आराधना।
योग शुभ नवरात्रि मन की, पूर्ण करता कामना। ।
माँ बड़ी कल्याणकारी, यह जगत अवधारना।
आज आओ मिल करें हम, मात की अवगाहना।१।

 

 

अवतरण गिरिराज के घर, अम्ब का माना गया।
नाम माँ का शैलपुत्री, विश्व में जाना गया। ।
प्रथम दिन जग पूजता जिस, आदि माँ के रूप को।
शक्ति की संवाहिका माँ, पार्वती प्रतिरूप को।२।

 



नाथ शंकर हों हमारे, मात ने यह प्रण लिया।
आचरण में ला तपस्या, पूर्ण प्रण माँ ने किया। ।
रूप की जिस दूसरे दिन, जग करे है वंदना।
चारिणी हैं ब्रह्म की माँ, दक्ष की वह नंदना।३।

 



घंट जैसा चन्द्र आधा, शीश मैय्या धारती।
चन्द्र घंटा नाम तब से, मात निज साकारती। ।
चन्द्र घंटा की कृपा से, दिव्य हों अनुभूतियाँ।
द्वार माँ के हैं रमाते, संत योगी धूनियाँ।४।

 



माँ रचे ब्रह्मांड को जब, निज मधुर मुस्कान से।
मात कूष्मांडा जगत में, ज्ञात इस अभिधान से। ।
ध्यान माँ की धारणा से, कीर्ति जग यश वृद्धि हो।
रोग नाशे शोक हारे, आयु में अभिवृद्धि हो।५।

 




पाँचवा माँ रूप मोहक, स्कन्द धारे गोद में।
स्कन्द माता नाम ध्याते, भक्त सारे मोद में। ।
अर्चना माँ की सुगम अति, मोक्ष का पट खोलती।
जान महिमा सृष्टि सारी, मात की जय बोलती।६।

 



माँ दुलारी ऋषि कुमारी, कामदा कात्यायनी।
लग्न बाधा दूर करती, निर्मला वरदायनी। ।
रूप माँ का अति मनोहर, दुष्ट वृत्ति विनाशिनी।
माँ शुभग कल्याणकारी, भक्त धाम विहारिनी।७।

 

 

घोर श्यामा रौद्र वदना, सूर्य सम तेजस्विनी।
काल जेती माँ कहाती, कालरात्रि तपस्विनी। ।
माँ कराली मुक्त केशी, मुंड नर गल धारिनी।
अभय मुद्रा माँ सुहाती, मात गर्दभ वाहिनी।८।

 

 

गौर वर्णा माँ भवानी, श्वेत वृषभ वाहिनी।
कोमलांगी श्वेत वसना, माँ शुभग फलदायिनी। ।
पुण्य अर्जन मात दर्शन, पाप जीवन के जले।
माँ महागौरी कृपा से, कामना मन की फले।९।

 



रूप नौवां सिद्धिदात्री, अष्ट सिद्धि प्रदायिनी।
मात कमलासीन सुखदा, भक्त कष्ट निवारिनी। ।
ध्यान माँ व्यवधान टाले, माँ सकल भय हारिणी।
सौम्य रूपा माँ अनूपा, माँ जगत उद्धारिणी।१०।

 



सत्यनारायण सिंह

 

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