Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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दोहे

 

1 हिन्दी माँ का रूप है, समता की पहचान।
हिन्दी ने पैदा किए, तुलसी औ’ रसखान।।
2 हिन्दी हो हर बोल में, हिन्दी पे हो नाज।
हिन्दी में होने लगे, शासन के सब काज।।
3 दिल से चाहो तुम अगर, भारत का उत्थान।
परभाषा को त्याग के, बांटो हिन्दी ज्ञान।।
4 हिन्दी भाषा है रही, जन-जन की आवाज।
फिर क्यों आंसू रो रही, राष्ट्रभाषा आज।।
5 हिन्दी जैसी है नहीं, भाषा रे आसान।
पराभाषा से चिपकता, फिर क्यूं रे नादान।।
6 बिन भाषा के देश का, होय नहीं उत्थान।
बात पते की ये रही, समझो तनिक सुजान।।
7 मिलके सारे आज सभी, मन से लो ये ठान।
हिन्दी भाषा का कभी, घट ना पाए मान।।
8 जिनकी भाषा है नहीं, उनका रूके विकास।
पराभाषा से होत है, यथाशीघ्र विनाश ।।

9 मन रहता व्याकुल सदा, पाने माँ का प्यार।
लिखी मात की पातियां, बांचू बार हजार।।
10 अंतर्मन गोकुल हुआ, जाना जिसने प्यार।
मोहन हृदय में बसे, रहते नहीं विकार।।
11 बना दिखावा प्यार अब, लेती हवस उफान।
राधा के तन पे लगा, है मोहन का ध्यान।।
12 बस पैसों के दोस्त है, बस पैसों से प्यार।
बैठ सुदामा सोचता, मिले कहां अब यार।।
13 दुखी-गरीबों पे सदा, जो बांटे हैं प्यार।
सपने उसके सब सदा, होते हैx साकार।।
14 आपस में जब प्यार हो, फले खूब व्यवहार।
रिश्तों की दीवार में, पड़ती नहीं दरार।।
15 नवभोर में फले-फूले, मन में निश्छल प्यार।
आंगन आंगन फूल हो, महके बसंत बहार।।
16 रो हृदय में प्यार जो, बांटे हरदम प्यार।
उसके घर आंगन सदा, आए दिन त्योहार।।

17 जहां महकता प्यार हो, धन न बने दीवार।
वहा कभी होती नहीं, आपस में तकरार।।
18 प्रेम वासनामय हुआ, टूट गए अनुबंध।
बिारे-बिखरे से लगे, अब मीरा के छंद।।
19 राखी प्रतीक प्रेम की, राखी है विश्वास।
जीवनभर है महकती, बनके फूल सुवास।।
20 राखी के धागे बसी, मीठी-मीठी प्रीत।
दुलार प्यारी बहन का, जैसे महका गीत।।
- डा0 सत्यवान वर्मा सौरभ
कविता निकेतन, बड़वा भिवानी हरियाणा-127045

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