Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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बिजली गुल

 

शाम को
बिजली गुल
और हम
हर तरह की बातें
अँधेरे में
बरामदे में
उजाले की बातें
राजनीति की बातें
वो मिनिस्टर अच्छा नहीं है
शायद वो भी काम का नहीं होता
रिज़र्वेशन गलत है...
दादाजी ने पैकेट से निकाल कर
सिगरेट सुलगाया है
दादी गुस्सा है
सब हंसते हैं
इस व्याहत अँधेरे में
रोशनी तलाशना
बेवकूफ़ी है
चिराग जलाओ
या फिर इंतज़ार करो
रोशनी का !
पर हमें क्या ?
अँधेरे में
हम एक दूसरे की लाठी हैं
जो इस काले पारदर्शी कमरे में
बंद हैं कहीं चुपचाप !

इस गुमनाम अँधेरे को
चीर सकता है
एक जलता दीया
जो जला सकता है
तुम्हे भी
और उसे भी !
पर जलाने के लिए
जलना पड़ता है
इस तप से
दूर बहुत दूर हम
इंतज़ार करतें हैं
रोशनी का !

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