Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

ख़ुशी

 

आज मैं ख़ुश हूँ |
रोज़ की तरह
आज भी ख़ुश हूँ |

एक बेटी अपने पिता की छाती पर
लात रख छत पर टांक दी गयी |
मैं ख़ुश हूँ |
एक बूढा अपने कब्र में पैर टांग
गुरुत्वाकर्षण को बुला रहा है |
मैं ख़ुश हूँ |
एक पिता अपने बच्चे की लाश धरे सोच रहा है;
“वोट देने दो कोस जाने पड़ते हैं
चिकित्सा को बाईस कोस क्यों ?”
मैं तो ख़ुश हूँ |
आज दो महा दैत्य (देश) टकरा रहे हैं
और बीच फसें कीट पतंग छटपटा रहे हैं |
मुझे क्या ?
आज एक वैज्ञानिक अपनी खोज को
किसी और के नाम पढ़ रहा है |
मैं ख़ुश हूँ |

एक बच्ची आज बिस्तर पर नग्न लेटी है
किसी अनजाने व्यापारी की प्रतीक्षा में |
मैं ख़ुश हूँ |
एक सिपाही आज अपने शत्रु को मार
आंसू बहा रहा है, सरहद को गालियाँ दे रहा है |
मैं तो ख़ुश हूँ न !
मेरी ख़ुशी में शामिल है
वह जो चौक पर मरा पड़ा है |
एक पिता जो अपनी लाश को मुखाग्नि दे रहा है |
जन्नत की वादियों पर
लहू जो गीत गाता बह रहा है |

एक मज़दूर भूखे पेट सो गया |
मैं ख़ुश हूँ |
गोरैय्या आज बही क्षितिज नहीं छू सकी |
मैं ख़ुश हूँ |
विएतनाम में फिर से चीखें गूँज रही हैं |
मैं ख़ुश हूँ |
गर्मी की तपिश में कोई देह आत्मदाह कर रहा है |
मैं ख़ुश
हूँ |

एक बुढ़िया अपने मृत्यु प्रमाण पत्र के लिए
अफसर के पांव लोट रही है |
मैं ख़ुश हूँ |
आज एक कमज़ोर अन्याय से टकरा कर
छिन्न भिन्न हो गया |
मैं फिर भी ख़ुश हूँ |
कुछ नौजवान सिगरेट के धुंए में
अपना अतीत, वर्त्तमान, भविष्य खोज रहे हैं |
मैं ख़ुश हूँ |
पृथ्वी के गाल पर आंसू
आज बाढ़ बन कितनों को रुला रहे हैं |
मैं ख़ुश हूँ |
सात साल का एक बच्चा आज बन्दूक लिए
सरहद पार उतर रहा है |
मैं ख़ुश हूँ |
एक अधेड़ उम्र की स्त्री
अपने झुर्रियों के जाल में उलझ कर चीख रही है |
मैं ख़ुश हूँ |
अमावस की रात में व्योम सोच रहा है-
“अगर मेरे तारे एक हो जाते
तो चाँद के नखरे न सहने पड़ते |”
मैं ख़ुश हूँ |
एक नौजवान आज विधवा का हाथ थामे
समाज के लांछन सह रहा है |
मैं ख़ुश हूँ |

एक द्रोही अपनी चिराकर्षित
मौत पर ख़ुश है |
मैं भी ख़ुश हूँ |
एक पति अपनी सावित्री सी बीवी पर
लांछन लगा कर ख़ुश है |
मैं भी ख़ुश हूँ |
एक देश भक्त दस शत्रुओं के
घर जला कर ख़ुश है
मैं भी ख़ुश हूँ |
एक बच्चा बूढ़े माली का
सर फोड़ कर ख़ुश है |
मैं भी ख़ुश हूँ |
एक कर्मनिष्ठ छात्र अपने प्रतिद्वंदी को
फ़ेल होता देख ख़ुश है |
मैं भी ख़ुश हूँ |
एक कवि आज अपनी ही कविता को
पढ़कर; न समझकर ख़ुश है |
मैं भी ख़ुश हूँ |

सारा जग अपनी ख़ुशी में नाच रहा है |

मैं भी उसी ख़ुशी में शामिल हूँ |

ये आँसू जो मेरे गाल पर बह रहे हैं
विश्वास करें
ख़ुशी के ही हैं !!

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ