Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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किवाड़

 

मेरी दस्तकों से
बना है
ये किवाड़ |
इसी के आर-पार जाते
हम किसे ढूंढ पाते हैं
कहाँ खो जाते हैं ?
गूँज खोकर
निःशब्द होकर
सन्नाटे सा खडा
तना है
यह किवाड़ |
मेरी दस्तकों से
बना है
यह किवाड़ |

असंख्य ह्रदय में
एक साथ रहकर भी
अकेलेपन के भुलावे में
भटकता हूँ मैं |
मेरी गलत दस्तकों
के अन्धकार में बंद
इस किवाड़ के न खुलने की
वेदना है
यह किवाड़ |
मेरी दस्तकों से
बना है
यह किवाड़ |

पूछता हूँ-
"कौन है ?"
कहता हूँ-
"मैं हूँ |"
भीतर पहले से होता हूँ
मौजूद
बाहर से जब किवाड़ पर
आता हूँ |
बिछड़ जाने पर
फिर मिलने की
कल्पना है
यह किवाड़ |
मेरी दस्तकों से
बना है
यह किवाड़ |

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