Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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उत्थिष्ठ भारत

 

अमर क्रांति की चिनगारी से
लगी प्राणों में आग
सदियों से सोयी जो ज्वाला
आज गयी है जाग |
सर ऊंचा हिमालय जैसा
गर्दन पर गंगा पसीना
चरण धोतें हैं सागर तीनों
चित्तौड़ हमारा सीना |
शूर शहीदों की बलि वेदी पर
शीश करें नतमस्तक
राष्ट्र भक्तों को समर्पित
उत्कृष्ठ भारत ! उत्थिष्ठ भारत !
राष्ट्र हमारा मांग रहा है
हमसे अमर बलिदान
छिपाकर तो भागते फिरते
कायर अपने प्राण |
शेरों बच्चें हैं हमसब
न बैठें गीदड़ बन
आगे बढें हुँकार भरें
कि गूंजे धरती गगन |
कजरारे मेघों से बरसेंगे
अब न आँसू टप टप
हम लहरायें तिरंगा सूरज
उत्कृष्ठ भारत ! उत्थिष्ठ भारत !
आँखों की चिनगारी को
न बनने दो बहता पानी
नहीं है नियती हमारी
मेरे हिन्दुस्तानी |
क्या गूंजती नहीं हैं गलियारों में
दुशमन की ललकारें ?
या म्यान में फंसीं पड़ी हैं
हम वीरों की तलवारें ?
आज मचा फिर देवासुर रण
आज छिड़ा महाभारत !
सदा सुहागिन जननी प्यारी
उत्कृष्ठ भारत ! उत्थिष्ठ भारत !
वज्र सा बन बढ़ते जाते
न होंगी नसें ये ढीली
देखो हमें पुकार रही है
जननी खड़ी अकेली |
बहन खड़ी है दरवाज़े पर
लेकर कुमकुम की थाल
चल सैनिक पहन केसरिया बाना
पहना माँ को जयमाल |
ओ मेरे रणबांकुरे
पल भर भी तुम रुकना मत
झंडा ऊंचा हरदम रखना
उत्कृष्ठ भारत ! उत्थिष्ठ भारत !
हम फौलादी पीढीं हैं
खुदको संघर्षों से तोलें
आगे बढ़ बढ़ अथक निरंतर
काल के जबड़े खोलें |
यहाँ जली ज्वाला जौहर की
फूटे थे नभ में तारे
हमीं ने दे प्राण आहूती
जीते थे अंगारें |
सुनो राग भैरवी गूंजती
काश्मीर से अरुणांचल तक
संग बजती है अमर गीत ये
उत्कृष्ठ भारत ! उत्थिष्ठ भारत !
धर्म ग्राम घर जाति मिट्टी
केवल मन का मलाल
एक ही थे हम एक रहेंगे
चले वो जितने चाल |
ख़ुशी एक है भूख एक है
एक है मांस हमारा
अलग अलग नदियों से मिलकर
बनी है गंगा धरा |
खुशियों से लहलहाए मिट्टी
हमारी एक ही चाहत
अपने सुर में एक हो गाते
उत्कृष्ठ भारत ! उत्थिष्ठ भारत !
शहीदों की राख का टिका
गायें हम गीत विजय के
अन्धकार सहमे पसीज कर
सुन सूरज भी दहके |
महाप्रलय की बिजली कड़ककर
हमारी नसों में फूटे
आज प्राणों की प्रत्यंचा चढ़
हमीं धनुष से छूटे |
भार पड़ा है इन कन्धों पर
हम भरत खंड के नायक
सूरज के कनक उजालों सा
उत्कृष्ठ भारत ! उत्थिष्ठ भारत !
हम युवा हैं नए भारत के
व्यर्थ मरना है पाप
पिता की आशीष संग लायें हैं
पीछे हटना अभिशाप |
आज जगाएं प्राणों को अपने
की गूंजे रण की भेरी
हम रुकें नहीं हम थके नहीं
न होने पाए देरी |
सुनो माँ हमसे ये कहती -
मेरा दूध लजाना मत
गत गौरव फिरसे लहराए
उत्कृष्ठ भारत ! उत्थिष्ठ भारत !
पाँव की बेड़ियों की छन छन भी
इन्कलाब गातीं हैं
इनको तोड़ वीरांगनाएं
काँटों पर चल जातीं हैं
हाथों में उज्जवल तिरंगा लेकर
देखो वो बाला दौड़ी
देश ह्रदय में रखकर सबने
धरती की राहें मोड़ी |
बहिन बांधवी जननी सजनी
देती है ये दस्तक
तोडें कपट नए युग के
उत्कृष्ठ भारत ! उत्थिष्ठ भारत !
आज देश का बच्चा बच्चा
इन्कलाब सुर बोला
प्राणों की किलकारी कहती
रंग दे बसंती चोला |
बदल डालें हम राष्ट्र को ऐसे
हर घर में खुशियाँ डोले
भारतवर्ष की माटी ये कहती-
तुम बोलो, युग बोले !
नयी युग की नयी चुनौतियां
करते हमारा स्वागत
संकल्प करें की जीतेंगे
उत्कृष्ठ भारत ! उत्थिष्ठ भारत !

 

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