Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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चमन सहरा ही आयेगा नज़र आहिस्ता आहिस्ता

 

चमन सहरा ही आयेगा नज़र आहिस्ता आहिस्ता
जो हिज्रत कर गये सारे शजर आहिस्ता आहिस्ता

 

उसे इक दिन मेरी होगी ख़बर आहिस्ता आहिस्ता
मुहौब्बत काम करती है मगर आहिस्ता आहिस्ता

 

तो मैँ भी ख़ाक़ की सूरत बिखर कर आऊँगा तुझ तक
अगर कुछ तय करे तू भी सफ़र आहिस्ता आहिस्ता

 

ख़ुदा हाफ़िज़ मैं कह कर चला पडा जब जानिबे मँज़िल
किसी की आँख से टपके गुहर आहिस्ता आहिस्ता

 

कभी वो ख़ाब आँखोँ के अधूरे रह नहीँ पाते
जिन्हेँ अँजाम देता हो हुनर आहिस्ता आहिस्ता

 

भला फिर कौन उसकी नाव पानी मेँ डुबोयेगा
किनारे तक जिसे लायेँ भँवर आहिस्ता आहिस्ता

 

इसी उम्मीद पर जीते रहे हम लोग मुद्दत से
ढलेगा रात फिर होगी सहर आहिस्ता आहिस्ता

 

वफ़ा करना हमारी फ़ितरतोँ मेँ आ गया 'शायर'
हमारा नाम होगा मोतबर आहिस्ता आहिस्ता

 

 

 

*** शायर¤देहलवी ***

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