दे कर तेरे ख़याल फिर बहला दिया मुझे
हर मर्तबा उम्मीद ने धोखा दिया मुझे
बचता ही फिर रहा था मैँ अपने वज़ूद से
शीशे ने एक अक़्स से टकरा दिया मुझे
मैँ क़ब्र मेँ सुकून से सोया था बारहा
अहदे वफ़ा ने आपके चौँका दिया मुझे
होशो हवास जब मुझे पत्थर बना गये
क्यूँ बेख़ुदी ने आँख से टपका दिया मुझे
हर सिम्त देखने लगा उम्मीद के कंवल
जब तिश्नगी ने रेत का दरिया दिया मुझे
नाकामियोँ के रात भर मुझसे सवाल थे
ख़ुद मैने अपने आपको कितना दिया मुझे
काँटोँ का एक ताज़ भी सर पर सजाइये
जागीर मेँ जो आपने सहरा दिया मुझे
मैँ गिर रहा हूँ आप ही अपने मेयार से
जिस दिन से एक शख़्स ने काँधा दिया मुझे
बेशक़ हमारा यार भी क़ातिल से कम न था
फिर क्यू न कोई ज़ख़्म ही गहरा दिया मुझे
ख़ुश्बू किसी के जिस्म की फिर याद आ गयी
'शायर' किसी ख़याल ने महका दिया मुझे
*** शायर¤देहलवी ***
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