Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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दोस्तोँ की नज़र

 

इक हज़ल( फ़क्कडबाज़ी / ठलुआगर्दी ) दोस्तोँ की नज़र

 

 

अदावत हो गई कैसी तेरे मेरे घरानोँ मेँ
हमारे तेरे दिल की बात जा पँहुची है थानोँ मेँ

 

महल मेँ जब बसेरा हो गया ए सी ओ कूलर का
हवा तब से गुज़र करने लगी है शामियानोँ मेँ

 

दरोगा बस इसी इक केस को लेकर परीशां है
कि हम पैदा हुऐ कैसे जनानोँ के ठिकानोँ मेँ

 

हमारे पास तो सब ईँट गारा था मुहौब्बत का
दरारेँ नफ़रतोँ की आ गयीँ कैसे मकानोँ मेँ

 

अलामत ए रईसी कुछ ख़फा हमसे हुई ऐसी
नहीँ अब पीक भी बाक़ी हमारे पीकदानोँ मेँ

 

उसे बीबी तुम्हारी भाई कब की चर गई होगी
जो भूसा भर के लाये ज़हन के तुम बारदानोँ मेँ

 

हसीनोँ के मुहल्ले मेँ इसी डर से नहीँ जाते
कि शायद मेहरबानी बच रही हो मेहरबानोँ मेँ

 

मुझे कल रात टीवी देख कर ऐसा लगा यारो
कि अब आशिक़ बनाये जा रहे हैँ कारख़ानोँ मेँ

 

जिसे मैँ तोड लाया हूँ मिरा कमरा सजाने को
उसी इक फूल का चर्चा था अक्सर बागबानोँ मेँ

 

हमेँ अफ़सोस दाना डालने का तब हुआ 'शायर'
कबूतर जाल लेकर उड गये जब आसमानोँ मेँ

 

 

*** शायर¤देहलवी ***

 

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