Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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इक आफ़ताब था सूरज किरन के जैसा था

 

इक आफ़ताब था सूरज किरन के जैसा था
तेरा बदन तो बस तेरे बदन के जैसा था

 

मैँ मर रहा था तो मरना मुहाल था मुझको
मैँ जी रहा था तो जीना जलन के जैसा था

 

ये मोजजा तेरी ख़ुश्बू से घर मेँ आया था
तुम्हारे बाद भी घर इक चमन के जैसा था

 

बिछुड गया मगर दिल से नहीँ भुला पाता
वो इक मुक़ाम जो मेरे वतन के जैसा था

 

तुम्हारे शहर मेँ शायर सा इक नहीँ दिखता
लिबास हू बहू जिसका कफ़न के जैसा था

 

 

 

*** शायर¤देहलवी ***

 

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