Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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इक जरा बाज़ार का चक्कर लगा कर देख ले

 

इक जरा बाज़ार का चक्कर लगा कर देख ले
बेच देना पर मेरी क़ीमत बढ़ा कर देख ले

 

धुँध के उस पार इक सूरज तेरा है मुन्तज़िर
हौसला कर धुँध के उस पार जाकर देख ले

 

लोग हँस कर देखते हैँ आज मेरे हाल पर
मैँ तमाशा बन गया इक बार आकर देख ले

 

पूछता क्या है मज़ा तू दूर से इस खेल का
आ हमारे साथ अपना घर जला कर देख ले

 

ख़्वाहिशेँ तेरे अधूरी रह न जायेँ बदहवस
चल जरा इस बार तू पत्थर उठा कर देख ले

 

गर ख़ुदी को छोड देगा तो ख़ुदा हो जायेगा
बेख़ुदी मेँ आज तू ख़ुद को गवा कर देख ले

 

कौन चलता है सफ़र मेँ साथ तेरे हर कदम
इक जरा पीछे कभी गरदन घुमा कर देख ले

 

इम्तिहाँ लेना हमारा भूल जायेगा तुझे
हाथ पकडा है तेरा ले अब छुडा कर देख ले

 

रक़्स तो तेरा ख़ुदा देखेगा इक दिन हश्र मेँ
शौक़ से जितना हमेँ तू अब नचा कर देख ले

 

मैँ ग़ज़ल बन कर तेरी तन्हाइयोँ के साथ हूँ
बस कभी फ़ुर्सत मेँ मुझको गुनगुना कर देख ले

 

छोड ये शिकवे गिले इस नफ़रतोँ के शहर मेँ
आ हमारे साथ इक दिन मुस्कुरा कर देख ले

 

सिर्फ़ कहते ही नहीँ हम काम के भी हैँ बहुत
है यक़ीँ तो ठीक वर्ना आज़मा कर देख ले

 

हैं यहाँ इन्सान या सब हो गये पत्थर के बुत
बज़्म मेँ 'शायर' जरा नग्मा सुना कर देख ले

 

 

 

*** शायर¤देहलवी ***

 

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