Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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हरचन्द मसरूफ़ दोस्त की नज़र

 

दम मारने की दो घडी मोहलत नहीँ देती
ये ज़िन्दगी है ज़िन्दगी फ़ुर्सत नहीँ देती

 

दुनिया तो बरगला गई मुझको तेरे पीछे
हिम्मत तेरे आगे मगर हिम्मत नहीँ देती

 

जो दर ब'दर फिरे तेरा दरबार छोड कर
ऐसे फ़क़ीर को अना इज्ज़त नहीँ देती

 

तीरे नज़र आख़िर तुम्हारा काम कर गया
बीमारे इश्क़ को दवा ताक़त नहीँ देती

 

हमने जो इश्क़ मेँ मज़ा पाया है आज तक
ऐसा मज़ा तो कोई भी इल्लत नहीँ देती

 

निस्बत मुझे है आज भी उस नाम से गहरी
लेकिन ये फ़र्क है कि अब हसरत नहीँ देती

 

बिकने तो आ गये सरे बाज़ार मेँ नादां
दुनियाँ मगर ख़ुलूस की क़ीमत नहीँ देती

 

मैँ कर रहा हूँ उन सभी महलोँ का शुक्रिया
जिनको हमारी झोँपडी दिक्कत नहीँ देती

 

शायर तेरी ख़ातिर किसी देवी से कम नहीँ
वो साहिबा जो अब तुझे नफ़रत नहीँ देती

 

 

*** शायर¤देहलवी ***

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