Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

इन सराबोँ मेँ हक़ीक़त ढ़ूँढती फिरती रही

 

इन सराबोँ मेँ हक़ीक़त ढ़ूँढती फिरती रही
ज़िन्दगी हर सिम्त राहत ढूँढती फिरती रही

 

इक हज़र को छू के हमने क्या फ़रिश्ता कर दिया
फिर हमेँ पूरी रियासत ढ़ूढती फिरती रही

 

मैँ तेरी ज़ुल्फ़ोँ तले आराम से लेटा रहा
दहर मेँ मुझको क़यामत ढूँढती फिरती रही

 

वो मुझे ठुकरा गयी मेरी मुहौब्बत छोड कर
बस तमन्ना और दौलत ढूँढती फिरती रही

 

हर नये दिन एक सौदा ज़हन मेँ लेकर उठे
हर नये दिन एक आफ़त ढूँढती फिरती रही

 

चंद बीते दिन जवानी के मुझे भी याद हैँ
जब मुझे भी एक हसरत ढूँढती फिरती रही

 

मैँ ख़ुशी के एक लम्हे को तरसता था मुझे
एक दिन की बादशाहत ढूँढती फिरती रही

 

वो जरूरी काम मेँ दिन रात उल्झा ही रहा
और उसे मेरी जरूरत ढूँढती फिरती रही

 

शहर क्या आया कि मेरे हाथ से जन्नत गई
माँ तुझे मेरी इबादत ढूँढती फिरती रही

 

कौन हिन्दू है मुसलमां कौन है इस मुल्क मेँ
वोट की ख़ातिर सियासत ढूँढती फिरती रही

 

तू शरीफ़ोँ के मुहल्ले मेँ मकां लेकर रहा
पर तुझे 'शायर' शराफ़त ढूँढती फिरती रही

 

 

 

*** शायर¤देहलवी ***

 

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ