इन सराबोँ मेँ हक़ीक़त ढ़ूँढती फिरती रही
ज़िन्दगी हर सिम्त राहत ढूँढती फिरती रही
इक हज़र को छू के हमने क्या फ़रिश्ता कर दिया
फिर हमेँ पूरी रियासत ढ़ूढती फिरती रही
मैँ तेरी ज़ुल्फ़ोँ तले आराम से लेटा रहा
दहर मेँ मुझको क़यामत ढूँढती फिरती रही
वो मुझे ठुकरा गयी मेरी मुहौब्बत छोड कर
बस तमन्ना और दौलत ढूँढती फिरती रही
हर नये दिन एक सौदा ज़हन मेँ लेकर उठे
हर नये दिन एक आफ़त ढूँढती फिरती रही
चंद बीते दिन जवानी के मुझे भी याद हैँ
जब मुझे भी एक हसरत ढूँढती फिरती रही
मैँ ख़ुशी के एक लम्हे को तरसता था मुझे
एक दिन की बादशाहत ढूँढती फिरती रही
वो जरूरी काम मेँ दिन रात उल्झा ही रहा
और उसे मेरी जरूरत ढूँढती फिरती रही
शहर क्या आया कि मेरे हाथ से जन्नत गई
माँ तुझे मेरी इबादत ढूँढती फिरती रही
कौन हिन्दू है मुसलमां कौन है इस मुल्क मेँ
वोट की ख़ातिर सियासत ढूँढती फिरती रही
तू शरीफ़ोँ के मुहल्ले मेँ मकां लेकर रहा
पर तुझे 'शायर' शराफ़त ढूँढती फिरती रही
*** शायर¤देहलवी ***
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