Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

जब तक जिये हवाओँ के ख़ँजर तले रहे

 

जब तक जिये हवाओँ के ख़ँजर तले रहे
ये हौँसले भी कम नहीँ दीये जले रहे

 

कुछ तो शिफ़ाओँ से तेरी तिस्क़ीन हो हमेँ
ज़ख़्मे जिगर को कब तलक कोई मले रहे

 

मौसम का ये मिजाज़ तो पहले कभी न था
आँधी गुज़र गई न अब वो जलज़ले रहे

 

अब तो नज़र मिला कि तेरे इन्तिजार मेँ
कितने हसीन ख़ाब आँखोँ मेँ पले रहे

 

ये दिलकुशी तेरी अदा की ख़ासियत है फिर
तेरी अदाओँ से ख़फ़ा क्यूँ मनचले रहे

 

मैने तो ख़ुद वुजूद भी अपना मिटा दिया
हैरान हूँ कि दरमियां क्यूँ फ़ाँसले रहे

 

'शायर' तुम्हारे शहर मेँ जिस दिन तलक रहा
तूफ़ान कुछ रहे यहाँ कुछ बलवले रहे

 

 

 

**** शायर¤देहलवी ****

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ