Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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क़लम फ़र्ज़ी सनद फ़र्ज़ी ज़हीनी रौशनी फ़र्ज़ी

 

क़लम फ़र्ज़ी सनद फ़र्ज़ी ज़हीनी रौशनी फ़र्ज़ी
तेरे दरबार मेँ हमको मिली भी नौकरी फ़र्ज़ी

 

सियासत जुगनुओँ के हाथ मेँ क्या रंग लायी है
हमारे शहर मेँ उगने लगे अब चाँद भी फ़र्ज़ी

 

मसीहा आँख मूँदे चैन से आराम करते हैँ
मरीज़ोँ की दिखायी दे रही है बेकसी फ़र्ज़ी

 

भला ग़ैरत करेगी क्या जहाँ मेँ दीदावर कम थे
तो खुद फ़नकार ही लेने लगे फिर दाद भी फ़र्ज़ी

 

वफ़ा के शहर मेँ हमने भी खाये हैँ बहुत धोखे
तेरी मुस्कान की लगने लगी है दिलकशी फ़र्ज़ी

 

कभी तुझको भी इतना डूब के चाहा था हमने यूँ
कि तेरे बाद मेँ लगने लगी थी ज़िन्दगी फ़र्ज़ी

 

बुतो नाराज़ होना छोड दो ये दौर ऐसा है
ख़ुदा की कर रहे हैँ लोग अब तो बँदगी फ़र्ज़ी

 

कभी उनसे किसी ने कह दिया था हम ही दुश्मन हैँ
निभाये जा रहे हैँ वो भी हम से दुश्मनी फ़र्ज़ी

 

वफ़ादारी निभाने को कलेजा चाहिये शायर
वफ़ा की राह मेँ आशिक़ करे हैँ ख़ुदकुशी फ़र्ज़ी

 

 

 

*** शायर¤देहलवी ***

 

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