क्यू गिर रहे हैँ गुम्बदो मीनार दोस्तो
क्या सोचते हैँ दस्त ए मेमार दोस्तो
सरकार से है तंग अब हर आम आदमी
या आदमी से तंग है सरकार दोस्तो
चुपचाप देखते रहो सारी ख़रीदारी
मैँ बन गया हूँ आजकल बाज़ार दोस्तो
रोजी की भाग दौड मेँ मरता है आदमी
जीने को सिर्फ़ रह गया इतवार दोस्तो
मैने तमाम मै मेरे हक़ की बहा डाली
फिर किस लिये साक़ी हुआ बीमार दोस्तो
दौलत मुझे न मिल सकी मेरे वजूद की
क्यूँ शहरे दिल मेरा लुटा हर बार दोस्तो
गर शाह हूँ तामील मेरे हुक़्म की करो
मैँ चाहता हूँ फिर लगे दरबार दोस्तो
मैँ गर फ़क़ीर हूँ यहाँ फिर शाह किस लिये
जलते हैँ देखकर मेरा दस्तार दोस्तो
मानी बदल गये अगर लफ़्जोँ के जब यहाँ
फिर क्या ग़ज़ल साया करेँ अख़बार दोस्तो
बेशक़ मुईन हो गये पत्थर ये मील के
धीमी न कीजिये अभी रफ़्तार दोस्तो
झूठी सही पै दाद तो देते रहे मुझे
लायेँ कहाँ से आप से फ़नकार दोस्तो
मिलने लगा हैँ प्यार तो हर इक दुकान पे
मिलता नही लेकिन कहीँ किरदार दोस्तो
आदत भले ख़राब है उसकी तो क्या हुआ
'शायर' न कर सका कभी इन्कार दोस्तो
**** शायर¤देहलवी ****
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