मक़बरोँ से निकाल कर देखेँ
आओ रिश्ते सँभाल कर देखेँ
उसको अच्छा लगे यही शायद
ख़ुद पे थोडा मलाल कर देखेँ
रंग सौ बार क्यूँ बदलता है
इस लहू को उबाल कर देखेँ
वक़्त करवट बदल रहा होगा
ख़ुद को साँचे मेँ ढाल कर देखेँ
वो न कर पाये जो कभी पूरी
ऐसी उम्मीद पाल कर देखेँ
वो भला था कि मैँ बुरा ही था
आज ख़ुद से सवाल कर देखेँ
कुछ सो 'शायर' जवाब आयेगा
एक सिक्का उछाल कर देखेँ
*** शायर¤देहलवी ***
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