Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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मिले जो भी उसे अपना बना लो

 

मिले जो भी उसे अपना बना लो
मगर ये कब कहा तूफ़ान पालो

 

किसी दिन जा मिलो उस बेवफ़ा से
पुराने इश्क़ की दावत उडा लो

 

निभेगी ख़ूब तेरी और मेरी
अगर ख़र्चा हमारा तुम उठा लो

 

अँधेरा है बहुत गहरा जफ़ा का
चरागे दिल जला लो हुश्न वालो

 

बहुत से साँप बाहर आ पडेँगे
अगर ये बाज़ुऐँ ऊपर उठा लो

 

तुम्हारी बज़्म शीशे की बनी है
हमारा नाम ऐसे मत उछालो

 

उसे बस काम की बातेँ सुनेँगी
भले कितने ही ऊँचे सुर लगा लो

 

हमेँ क्या है हमेँ तो डूबना है
हमारे नाम पर तुम भी कमा लो

 

दिया उम्मीद का बुझने से पहले
हवाऐँ तेज हैँ घर फ़ूँक डालो

 

मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ालुन
हमारी बहर बेशक़ ख़ूब गा लो

 

तुम्हारे शहर 'शायर' आ रहा हूँ
दरीचे राह काँटोँ से सजा लो

 

 

*** शायर¤देहलवी ***

 

 

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