नज़र से दूर रहकर राबिता गहरा नहीँ होता
बिना जज़्बात का रिश्ता कोई रिस्ता नहीँ होता
हमेँ वो चाहता तो है मगर पर्दनशीनोँ मेँ
हमारा नाम लेकर वो कभी रुस्वा नहीँ होता
ख़ुशी की आड मेँ हर ग़म छिपा बैठा हूँ सीने मेँ
मगर इस राज़ का तुझसे सनम पर्दा नहीँ होता
बुलाते हैँ भँवर जिस वक़्त मुझको कूद जाता हूँ
भले उस वक़्त मेरे हाथ मेँ तिनका नहीँ होता
दुआ दिल की ख़ुदा सुन ले सलामत हो मेरा दिलबर
बहुत दिन हो गये उसका मुझे जल्वा नहीँ होता
उसे मजबूर जो कर दे हमारे पास आने को
हमारे रब्त मेँ शायद कि वो जज़्बा नहीँ होता
रवानी हर किसी की फ़ितरतोँ मेँ आ नहीँ सकती
समन्दर सूख जाता है मगर दरिया नहीँ होता
मुझे मालूम है हसना तेरी आदत मेँ है शामिल
किसी के दर्द पर हसना मगर अच्छा नहीँ होता
पुकारे लाख शिद्दत से ख़ुशी उस दश्त पैमा को
तेरा ग़म साथ है 'शायर' कभी तन्हा नहीँ होता
***शायर¤देहलवी***
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