रौशनी मेँ भी अगर साथ न साया जाये
रब्त किस तौर उजाले से निभाया जाये
जाने वाले तुझे बस एक दफ़ा रोकूंगा
ये बता जा कि तुझे कैसे भुलाया जाये
जो उसे चूम के आया है ख़िज़ां मेँ खिलने
उस गुले तर को मेरे सामने लाया जाये
रंग हर हाल मेँ पानी तेरा गाढ़ा होगा
ख़ून का रंग भी अश्क़ोँ मेँ मिलाया जाये
मेरे क़ातिल ने मुझे सख़्त हिदायत दी है
नाम हर्गिज न ज़ुबां पर मेरा लाया जाये
संगदिल वो नहीँ इक रोज़ ज़रूर आयेगा
हाल बीमार का गर उसको सुनाया जाये
थक गया हूँ मैँ तेरे साथ मेँ चलकर 'शायर'
बार मुझसे न सदाक़त का उठाया जाये
***शायर¤देहलवी ***
रब्त=रिश्ता तौर=तरीका
दफ़ा=मर्तबा, बार
ख़िज़ां=पतझड
संगदिल=पत्थर दिल
बार =बोझ
सदाक़त=सच्चाई
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY