Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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उसकी निगाहे नाज़ के ख़ँजर नही रहे

 

उसकी निगाहे नाज़ के ख़ँजर नही रहे
अब मैँ नही तो उसके वो तेवर नहीँ रहे

 

अँगार सी तपने लगी मेरे लिये ज़मीँ
जिस शब तुम्हारी याद के बिस्तर नहीँ रहे

 

क्या जख़्म खा कर चुप रहेँ वो लोग मर गये
या अब तुम्हारे शहर मेँ पत्थर नहीँ रहे

 

फ़ारिग हुऐ तो ग़म से तेरे गुफ़्तगू हुई
हम फ़ुर्सतोँ मेँ आज तक अक्सर नहीँ रहे

 

जी चाहता है छोड कर चल दूँ ये शहर भी
इस शहर मेँ अब आप से दिलबर नहीँ रहे

 

जो शान से पहना किये फ़िक्रे वज़ूद को
दस्तार तो मौज़ूद हैँ वो सर नहीँ रहे

 

'शायर' तुम्हारे रब्त के हम हो गये काइल
राहे वफ़ा मेँ आप से रहबर नही रहे

 

 

***शायर¤देहलवी***

 

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