प्रीत की रात में प्रीत गाता हूँ मैं ,
खुशियाँ द्वारें खड़ी शगुन मनाता हूँ मैं,
प्रेम से प्रीत का हैं मिलन दोस्तों,
इसलिए कोई प्रीत का गीत गाता हूँ मैं ।
अँखियाँ अश्रु भरी हैं इस सजी शाम में,
प्रीत का अब ये दामन प्रेम थाम ले,
उठ रही हैं दुआएं जो हृदय से कही,
उनको सुर ताल से बस सजाता हूँ मैं ।
चाँद तारों से समां अब ये रंगीन हो,
खुश हो चेहरे सभी कोई ना ग़मगीन हो,
इतनी सी हैं दुआ तुम सदा खुश रहो,
सजदो में इसलिए सर झुकाता हूँ मैं ।
ऐसी अनमोल शामें रोज आती नही,
चांदनी भी कोई गीत रोज गाती नही ,
कायनात झूमकर के दुआए दे रही,
इसके संग संग झूमता जाता हूँ मैं ॥
रचनाकार :-प्रशांत व्यास रूद्र
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