Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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प्रलय के बाद

 

धम धड़ाम आह हाय राम
कुछ चीख पुकार सहायता की आवाजें शोरोगुल धरती का हिलना फिर धीरे धीरे सब शान्त हो गया अर्ध चैतन्य अवस्था में उसने महसूस किया कि वो शायद इमारतों के गिरने की आवाजें थीं पर उसे विष्चास था कि उसका मकान नहीं गिर सकता अध्यापक पिता ने बड़ी जीदारी से सीमेन्ट लगवाया था अपने हाथों से तराई की थी इंजीनियर भाई ने स्लैब बीम और काॅलम खुद डिजाइन किये थे जिसमें सेफटी फैक्टर सामान्य से दोगुना लिया था । उसका मकान नहीं बॅगला हाॅ बॅगला पिताजी के लिये बॅगला ही था जिन्दगी भर किराये के मकान में रहने वाले रिटायर पिता के दो बेटे जब इंजीनियर हो गये तो उन्हें बॅगला बनाने की धुन सवार हो गई थी और उसके लिये बेटों पर जायज नाजायज दवाब भी डालते थे ये दवाब इस हद तक था कि दोनों बड़े बेटे पिता के बीमार पड़ने की सूरत में उन्हें दवा खुद खरीदकर दे जाते थे क्योंकि उन्हें शक था कि अगर पिताजी को नकद रकम दे दी गई तो अपनी धुन के चलते दवा के पैसे भी बॅगले में लगा देंगे इसके बावजूद भी बेटे पिता की इस धुन को नहीं रोक पाते थे और दूध पीने के लिये जो पैसे बड़ा बेटा देकर जाता उसका पेन्ट खरीद लाते भले ही उतने पेन्ट से किचन ही पुत पाये । बहरहाल उस मकान को अपना पेट और बेटों की गाॅठ काटकर पिताजी ने बॅगला बना ही दिया था और इतना मजबूत बना दिया था कि बिना डायनामाइट के नहीं गिर सकता था ।
अपना मकान नहीं गिर सकता और धरती तो भाॅग खाने के बाद ऐसे भी हिलती है उसने नींद में सोचा
वो रूपेश् था एक पढ़ा लिखा बेरोजगार बेरोजगारी हालाॅकि उसकी भी परेषानी थी पर उससे ज्यादा उसके पिताजी और पड़ोसियों की भी दोनों बड़े भाई इंजीनियर बस वही फिसडडी बेरोजगार । ऐसा नहीं था कि वो अपने भाइयों से दिमाग में बहुत कम था दरअसल उसके अंदर वो नहीं था जो पिताजी चाहते थे वो कविता लिखना चाहता था कहानी लिखना चाहता था क्रिकेट भी खेलना चाहता था पर पिताजी उसे इंजीनियर बनाने पर तुले थे नतीजतन वो न इंजीनियर बन पाया न कवि और न ही क्रिकेटर भाइयों के इंजीनियर होने के गुमान में कम पैसों की प्राइवेट नौकरी उससे होती न थी । बहरहाल हालिया तौर पर वो बेरोजगार था तो था और पिताजी का टेन्षन कम करने के लिये उसने अच्छा तरीका खोजा था वो पूरा दिन घर से गायब रहता और रात को जब पिताजी सो जाते तो करीब बारह बजे घर में घुसता माॅ उसकी चारपाई बाहर बिछा देती खूॅटी से खाना लटका देती वह आता और खा पीकर सो जाता सुबह पिताजी को यही पता चलता कि बेटा उनके सोने के तुरन्त बाद ही आ गया था । बेरोजगारी के पिछले चार साल उसने इसी तरह काटे थे इसमें उसका साथ दिया उसके जिगरी यार देवेष ने जो महीने में दस बारह दिन उसके लिये शराब का इंतजाम कर ही देता था जिस दिन शराब न होती दोनों यार पचास पचास पैसे की भाॅग खाते और मस्त हो कर कहकहे लगाते । उस रात भी यही हुआ था वह भाॅग खाकर ही सोया था पर धूम धड़ाम की आवाजों ने उसे चैंका दिया उसने करवट ली तो उसका हाथ किसी कड़ी चीज से टकराया उसने टटोलकर आॅखें खोलीं तो अपने ≈पर कंक्रीट की मोटी आड़ी परत को ढॅका हुआ पाया । उसने खुद को संयत किया और नीचे से निकलने की कोषिष की जैसे तैसे निकला तो पता चला कि वह बॅगले का डिजाइनदार पोर्च था जो पिताजी ने बड़ी हसरतों से बनवाया था ताकि उनका बॅगला काॅलौनी में सबसे अलग दिखे। उसने चारों ओर देखा सारे मकान गिरे पड़े थे चारों ओर मलवा ही मलवा था उसे माॅ पिताजी की चिन्ता हुई उसने आवाज लगाई -
माॅ पिताजी!
कोई उत्तर नहीं मिला कंक्रीट के मलवे में झाॅक पाना उसके लिये संभव नहीं था उसने सामने वाले मकान की ओर आवाज लगाई-
संजय! वकील साहब।
कोई आवाज नहीं आई वह गिरी हुई बाउन्ड्री के मलवे को फाॅदकर बाहर आया कालौनी के हर घर पर उसने आवाज लगाई कोई उत्तर नहीं मिला वह वापस लौट आया और घर के बाहर पत्थर पर बैठ गया।
इसका मतलब पूरी कालौनी? या पूरा शहर या पूरा देश् या पूरी दुनिया? नहीं ऐसा कैसे हो सकता है? पाकिस्तान से तनातनी तो है पर एकदम एटमबम? एटमबम से तो मैं भी नहीं बचता नहीं वो नहीं है ये ये कुछ और ही है वह बड़बड़ाया
हू हू करके काॅलोनी के सारे कुत्ते उसके पास आकर रोये जो शायद जीवन को तलाषते हुए उस तक आये थे
शुक्र है जीवन शेड्ढ है काॅलोनी में चाहे वो कुत्ते हों मतलब कहीं शहर में इंसान भी मेरी तरह जिन्दा हो सकते हैं उसने सोचा
उसने घर की ओर निगाह मारी उसे माॅ याद आने लगी कितनी अच्छी थी उसकी माॅ बेरोजगारी के चार साल माॅ और देवेश् ने ही कटवाये थे वरना पिताजी तो उसके पचासियों नामकरण कर चुके थे परजीवी आलसी रिष्तेदार पिताजी फूफाजी वगैरा वगैरा बुरे वो भी नहीं थे बस अपनी उम्मीदों को उसमें तलाषते थे । लेकिन माॅ वाकई उसी की माॅ थी तीनों बेटों में उसी को सबसे ज्यादा चाहती थी पिताजी जब उसे कुछ कहते तो बीच में आकर खुद चार गालियाॅ सुनती और उसे फरार होने का मौका दे देती। और वो? वो हमेषा माॅ के साथ छोटों जैसा व्यवहार करता माॅ जब उसे खाना खिलाती तो हाथ में रोटियाॅ लेकर बैठी रहती और अंतिम टुकड़ा खत्म होने से पहले थाली में रोटी ऐसे रखती जैसे चोरी कर रही हो पेट भर जाने पर माॅ रोटी रखती तो वह गुर्राता -
दानव समझ रखा है क्या?
खा ले बेटा पता नहीं कब लौटे? माॅ ऐसा महसूस करती जैसे रोटियाॅ उसके पेट में जा रही हो
सचमुच बहुत बुरा था मैं काश् मुझे एक मौका मिल पाता मैंने बहुत सताया मेरी माॅ को वह फूट फूटकर रोने लगा
हू हू पास में खड़े कुत्ते उसके साथ हमदर्दी जताते हुए सुर में सुर मिलाने लगे उसे लगा कुत्ते शायद उसका मजाक उड़ा रहे हैं उसने पत्थर उठाकर फेंका
चोप्प सालों
कुत्ते भाग गये लेकिन उसकी भावुकता को भंग कर गये वह समझने की कोश्श् िकरने लगा कि ये हुआ क्या है? शायद सरकारी राहत आने पर पता चले और हाॅ उसके भाई तो दूसरे शहरों में हैं वे तो जरूर खबर लेंगे पर वहाॅ भी यही हुआ हो तब ? नहीं ऐसा नहीं हो सकता क्यों नहीं हो सकता ? प्रलय ऐसी ही होती है पिछली प्रलय के बाद संसार में सिर्फ मनु ही बचे थे हो सकता है पूरी दुनिया में अकेला वही बचा हो यानी स्वयंभू मनु द्वितीय द्वितीय क्यों ? प्रथम और अंतिम अब सभ्यता फिर से शुरू होगी तब किसको पता कि मनु प्रथम भी थे? यानी अब वही मनु था? वही आदम वही ईसा वही मूसा वही मुहम्मद वही बुद्ध वही महावीर वही राम वही श्याम? । यानी दुनिया का इतिहास परंपरा नीति संस्कति सब उसके मुहताज थे? यानी अब सबसे बड़ी ताकत था वह । वो दुनिया जिसे पाने के लिये रूस और अमेरिका कुत्तों की तरह लड़ते थे उस दुनिया का सारा साम्राज्य उसका था? लेकिन ये साम्राज्य भला अब उसके किस काम का? वह इतिहास लिखेगा तो पढ़ेगा कौन? नीति बनाये तो उस पर चलेगा कौन? शासन करे तो गली के इन पाॅच कुत्तों पर? यानी अमेरिका और रूस तो वाकई बड़े वाले चूतिये थे ।
क्या साला भॅग में भी क्या क्या सूझता है? मनु आदम ईसा मुहम्मद अमेरिका रूस। पुराने मुहल्ले में शायद कोई बचा हो ? लेकिन बीच में थाना पड़ता है रात के दो से कम का वक्त नहीं है पर अब साले थाने कोतवाली से क्या डरना? क्या गारंटी है वहाॅ कोई बचा हो? वह बड़बड़ाया
वह चल दिया रास्ते में मलवे के ढेर ही दिख रहे थे न इंसान न इंसान की जात रोते हुए कुत्ते गिरे हुए मकान मैदान ही मैदान । वह बिटुमिन की दरार पड़ी काली सड़क से ही रास्तों को पहचान रहा था ।
यहाॅ पंडित पनवाड़ी की दूकान थी वह बुदबुदाया उसका हाथ आदतन माथे तक गया और वापस नीचे आ गया वह जब भी यहाॅ से निकलता पंडित दूर से ही चिल्लाता रूपेश् भइया राम राम वह इसी तरह माथे तक हाथ ले जाकर जवाब दिया करता ।
वह आगे बढ़ा पुलिस थाने का पोस्टकार्ड कलर का मलवा और सत्य मेव जयते का बोर्ड जता रहा था कि यहाॅ कभी थाना था रात के वक्त थाने के सामने से निकलना अक्सर ही खतरनाक होता है कम से कम दो चार गालियाॅ तो सुनना ही पड़ती हैं। एक बार उसे भी मुच्छड़ सिपाही ने गालियाॅ दी थीं तबसे वह भी बदले की फिराक में था कि कभी अॅधेरे उजाले में वह मुच्छड़ मिले और वह उसका सर फोड़कर भाग जाये ।
कोई है ? उसने आवाज लगाई
कोई उत्तर नहीं मिला उसने प्रतिषोध स्वरूप थाने के मलवे पर पेशब किया और आगे चल दिया
ये डिग्री कालेज ये रेलवे क्रासिंग और ये शहर का दिल सेन्टर पाइन्ट इसे कुछ लोग कनाॅट प्लेस आॅफ सिटी भी बोलते थे । यहाॅ हर समय भीड़ रहती थी अधिकतर लड़कियों की स्कूल काॅलेज जाने वाली सौन्दर्य प्रसाधन खरीदने वाली कपड़े खरीदने वाली। हालाॅकि वह शोहदा नहीं था पर अक्सर किसी खूबसूरत लड़की को देख कर कहता-
अपना शहर कितना खूबसूरत है?
जवाब मिलता-
बदतमीज
वह मुस्कराता और बढ़ लेता उसका दिल बदतमीज सुनना चाहता था पर न वहाॅ स्कूल था ना काॅलेज न दूकानें मलवा और सिर्फ मलवा । रामलीला मैदान से होता हुआ वह घंटाघर तक आया यहाॅ रास्ते तंग होने के कारण बहुत भीड़ हो जाती थी और अक्सर उसकी साइकिल के आगे एकाध बच्चा आ जाता और वह देश् की आबादी को जी भर कोसता
सिर्फ बच्चे ही पैदा होते हैं इस मुल्क में यही उत्पादन है हिन्दुस्तान का
वह चाहता था कि कोई बच्चा उससे आकर टकराये और वो बजाय उसके पूर्वजों को कोसने के उसे गले से लगा ले लेकिन वहाॅ भी कोई बच्चा नहीं था । घंटाघर की मीनार गिरी पड़ी थी जिसकी घड़ी की सुई एक पैंतीस पर अटकी थीं मतलब प्रलय या जो भी था एक पैंतीस पर आया था अगर कोई इंसान सामने होता तो घटना के वक्त को लेकर ही घंटे भर बहस हो सकती थी पर अब इस आॅकड़े को वह किसे बताये? वह आगे बढ़ा ।
घास मंडी चैबे की चाय की दूकान यहीं रोजाना उसका जिगरी यार देवेश् सुबह मिला करता था और दूर से रूपेश् को आता देख चाय का आर्डर देता रूपेश् के नजदीक आने पर ही सायास उसे जूठी करता और रूपेश् जबरन उससे छीनकर चाय पीता ।कितना मजा आता था देवेश् की जूठी चाय में ? उसने सोचा
सामने देवेश् का घर था लेकिन अब वहाॅ सिर्फ मलवा था उसने आवाज लगाई
देवेश्..!
कोई उत्तर नहीं मिला मतलब देवेश् भी नहीं? वह अपने पुराने मुहल्ले की ओर बढ़ा जहाॅ सालों अपने मास्टर पिता के साथ वो लोग किराये से रहे थे गरीबों की बस्ती बचपन की दोस्ती लड़कपन की यादें सब कुछ था वहाॅ ।
यहाॅ अपना कमरा था ये बल्लोमल का बल्लोमल की चुलबुली लड़कियाॅ पूरे मुहल्ले के लड़कों को नचाये रखने वाली आज एक तो कल दूसरा कल क्यों? एक ही वक्त में तीन तीन अफेयर चलाने वालीं रूपेश् को कभी पसंद नहीं रहीं। ये बाबू दड़ियल का मकान था रूपेश् बाबू को फूटी आॅख नहीं सुहाता था क्योंकि रूपेश् होली पर उसके घर में कीचड़ फेंककर दिवाली पर पटाखे फोड़कर परेषान करता था बदले में दड़ियल रूपेश् या उसके भाइयों के परीक्षा काल में लाउड स्पीकर पर भजन चलाता था । पर वहाॅ कुछ न था न बल्लोमल न उसकी लड़कियाॅ न बाबू दड़ियल न उसका लाउड स्पीकर।
यहाॅ शोभा का मकान था जिसके साथ उसका चक्कर दो तीन साल चला था उसे याद आया कि जब भी वह शोभा के माॅ बाप की गैर मौजूदगी में रात को उससे मिलने जाता तो सिर्फ फुसफुसाने पर दरवाजा खुल जाता था आदतन वह मलवे के पास जाकर फुसफुसाया-
श श शोभा
उसे अपनी बेवकूफी पर आष्चर्य हुआ
अब साला किसका डर? शोभा . वह जोरों से चिल्लाया
कोई उत्तर नहीं मिला
मतलब वो भी नहीं? माॅ पिताजी भइया दीदी शोभा देवेश् कोई भी नहीं ये क्या कोई भी नहीं पंडित पनवाड़ी मुच्छड़ सिपाही बदतमीज कहने वाली लड़कियाॅ घंटाघर के सरप्लस बच्चे बल्लोमल उसकी लड़कियाॅ बाबू दड़ियल कोई भी तो नहीं ।
हालाॅकि अब उसे नौकरी नहीं ढॅूढना थी कम्पटीश्न की तैयारी नहीं करना थी बेरोजगारी को शराब या भाॅग में नहीं डुबोना था। उसे पाकिस्तान से दुष्मनी की फिक्र नहीं थी अमेरिका ईराक युद्ध की आश्ंका नहीं रखना थी वह बेरोक टोक कहीं भी जा सकता था कुछ भी कह सकता था कुछ भी कर सकता था अपनी प्रषंसा में ग्रन्थ लिख सकता था खुद को स्वयंभ्ूा मनु या बाबा आदम घोड्ढित कर सकता था । दुनिया की सारी जमीन उसकी थी हर चीज उसकी थी पर वह सब नहीं चाहता था वह चाहता था कुछ अदद इंसान जो उससे बात कर सकें प्यार कर सकें बहस कर सकें मतभेद भी रख सकें लड़ सकें झगड़ सकें । कुछ अच्छाई कुछ बुराई यही तो जीवन है जीवन इतना बुरा तो कभी नहीं होता कि एक साथ पूरी दुनिया से खत्म कर दिया जाय । माॅ पिताजी भइया दीदी शोभा देवेश् कोई तो हो ये नहीं तो पंडित पनवाड़ी मुच्छड़ सिपाही बदतमीज कहने वाली लड़कियाॅ घंटाघर के सरप्लस बच्चे बल्लोमल उसकी लड़कियाॅ बाबू दड़ियल कोई तो हो । उसे इंसानों कीमत पर दुनिया की बादषाहत मंजूर न थी । उसने दोनों हाथ आसमान की ओर फैलाये और चिल्लाया
मुझे मनु की पदवी नहीं चाहिये मुझे इंसान चाहिये कुछ अदद इंसान
तभी माॅ की आवाज आई -
क्या बड़बड़ाता है रे?
वह खुश्ी से चीखा -
माॅ ?
हाॅ रे माॅ ने प्यार से उसके सर पर हाथ फेरा उसने देखा सुबह हो चुकी थी वह बिस्तर पर था माॅ प्यार से उसे देख रही थी
डर गया सपने में मेरा बच्चा माॅ ने बुदबुदाते हुए चप्पल को सिर से पैर तक उसके चारों ओर घुमाया दरवाजे के बाहर जाकर चप्पल पर थूका और जोर जोर से तीन चार बार जमीन में मारा
रूपेश् को अहसास हुआ कि ये सब रात की भाॅग की तरंग थी बहरहाल वह एक भयानक सपने से निकल चुका था लेकिन सपने में ही सही उसने जो सोचा वो इंसानियत के लिये वाजिब था ये सपने सभी देशें के हुक्मरानों को क्यों नहीं आते? क्यों लड़ते हैं लोग ताकत के लिये? क्यों लड़ते हैं देश् जमीनों के लिये? इंसानों की कीमत पर लोग क्यों जमीन पाना चाहते हैं ताकत पाना चाहते हैं? क्यों गरीब की रोटी को बारूद पर खर्च करते हैं देश्? उसने सोचा
वह तैयार हुआ माॅ के हाथ से खाना खाया और अतिरिक्त रोटी खिलाने पर आज उसने माॅ को टोका भी नहीं तो माॅ की हिम्मत बढ़ गई-
एक बात कहूॅ बुरा तो नहीं मानेगा?
हाॅ माॅ बोल वह मुस्कराकर बोला
अब काम नहीं होता बहू ला दे
माॅ पहले नौकरी
भाड़ में गई नौकरी तीन बेटे पैदा किये एक भी पास न रहेगा क्या यहीं कोइ्र्र दूकान खोल ले
मगर दूकान के लिये पैसा
तेरे बाप इस ताजमहल के लिये लड़कों से माॅग सकते हैं तो मैं तेरी दूकान के लिये माॅगू तो तेरे भाई मना करेंगे क्या?
तेरी मर्जी अब चलूॅ उसने माॅ के झुर्रीदार गाल को सहलाया
वह साइकिल लेकर निकला आज पंडित पनवाड़ी के बोलने से पहले ही उसने कहा
पंडित जी राम राम
राम राम रूपेश् भइया पंडित दूनी ताकत से चिल्लाया
वह मुस्कराकर आगे बढ़ा थाने के सामने निकलते हुए निगाहों से उसने उस जगह को तलाश्ने की कोश्श् िकी जहाॅ सपने में उसने मूता था उसे मुच्छड़ सिपाही दिखाई दिया जिसे देखकर वह मन ही मन गाली देता निकलता था उसी की ओर देखकर वह मुस्कराया और बोला-
दीवान जी राम राम
सिपाही ने भी हाथ हिलाया
राम राम
कितना आसान है दुष्मनी खत्म करना उसने सोचा
वह सेन्टर पाइन्ट से गुजरा एक खूबसूरत लड़की को देखकर उसने कहा
अपना शहर कितना खूबसूरत है
और लड़के कितने बदमाश् हैं हाजिर जवाब लड़की ने भी मुस्कराकर कहा
मजा आ गया वह हॅसा और आगे चल दिया घंटाघर के रास्ते में उसके सामने एक बच्चा आ गया और गिर पड़ा उसने साइकिल रोकी बच्चे को उठाकर खड़ा किया उसका गाल चूमा और साइकिल लेकर आगे चल दिया
वह घास की मंडी में चैबे की दूकान पर पहुॅचा देवेश् ने उसे देखकर चाय की चुस्की ली
छोड़ बे पूरी पी जायेगा क्या? उसने चाय का गिलास छीना
देवेश् ने चाय छोड़ दी
आज चाय कुछ अच्छी है रूपेश् बोला
चाय तो वैसी है जैसी रोज होती है
शायद पर आज मैं अलग हूॅ ये दुनिया अलग है इसलिये चाय भी अलग है
आज वैलेन्टाइन डे भी नहीं हुआ क्या आज?
बताता हूॅ जरा शोभा को देख आ≈ॅ
शोभा? वो चक्कर तो साल भर पहले खत्म हो गया था ना?
हाॅ पर कल रात से फिर शुरू हो गया
अबे कल रात पौने बारह बजे तक तो तू मेरे साथ था?
लौटकर लौटकर.. उसने चाय का गिलास रखा मुस्कराया और शोभा की ओर चल दिया ।

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