Ø चहकती चिडिया संग
कभी लगे चहकने
दूर गगन में लंबी
और उँची उडान भरे
कभी तितली संग
फूलों पर लगे मंडराने
बावरा मन मेरा।।
Ø पुनम की रात में
पूर्णमासी चांद के संग
लगे पूरी रात बिताने
शीतल चांदनी में
खोया हुआ
अध खुली आंखों
स्वप्नकोई बुनता
बावरा मन मेरा।।
Ø कभी विरह के गीत गाता
कभी मिलन के स्वप्न संजोता
प्रस्फूटित आनन्द के संग
प्रणय गीत नया कोई रचता
कभी गाता कभी मुस्कुराता
खुद से हर पल बातें करता
बावरा मन मेरा।।
Ø नयी नवेली दुल्हन-से
अनोखे रंगीन सपने
उमंग उत्साह का सागर
जैसे लेता रहता हिलोरे
वैसे ही सागर की मस्ती संग
हरदम लेता हिलोरे
बावरा मन मेरा।।
Ø खुद में हरदम खोया रहता
खुद ही खुद से बातें करता
कभी उत्साह का पार नही
तो कभी उदासी का अंत नही
धीर गंभीरता की चादर ओढे
तो कभी हंसी संग
रेशमी दुपट्टा उडाता
बावरा मन मेरा।।
Ø चाहे नयी तस्वीर बनाना
तो कभी शब्दों के संग खेलना
दूर गगन में लंबी उडान भरता
कभी फूलों के संग खिलता
तो कभी खुशबू के साथ महकता
कल्पना लोक में विचरण करता
बावरा मन मेरा।।
Ø रोशनी से नहायी रातों में
शांत निर्मल गहरी झील में
कश्ती को पतवार से चाहे खेना
तन्हां है पर नही है
तन्हाई का अहसास
कभीरेशमी हिजाब ओढें
शांत गहरी झील में कश्ती चलाता
बावरा मन मेरा।।
Ø चाहे आजादी के साथ जीना
तोड के सारी जंजीरो को
हर पल आगे बढता
सपनों को हकीकत में बदलता
विकास की नयी परिभाषा रचता
उन्मुक्त गगन में विचरता
बावरा मन मेरा।।
शकुन्तला पालीवाल
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