आज फिर घर की इज्जत को घर में सिर झुकाये उदास घुसते देखा तो घर के सभी मर्दो का खुन खौल उठा। एक के बाद एक सभी उस पर बरस पडे। आखिर क्यूं न बरसे उनके घर की बेटी को आज किसी ने फिर अभद्र टीका टिप्पणी से आहत किया। ये कैसे बर्दाश्त किया जाये? ये इलाका कुछ वर्षो से ऐसा ही होता जा रहा है जहाँ आए दिन कोई न कोई अप्रिय घटना महिलाओं के साथ घटित होती रहती हैै। अभद्र टीका टिप्पणी करना यहाँ आम बात है। आज घर की इज्जत को खुब हिदायते मिली-मुहँ ढक कर बाहर निकलने की शाम होने से पहले घर लौट आने की और भी बहुत। अगले दिन वह नकाब ओढे निकली जब दो दो चार लोगो के समूह को उसने अपनी तरफ घुरते देखा तो वो वही ठिठक गई। तभी उस समूह में से किसी की आवाज आई-जरा नकाब हटा के चेहरा दिखा दो अपने चाहने वाले को नाम बताती जाओ और भी न जाने बहुत कुछ। मगर आज वो डरी और सहमी नही आखिर क्यूं डरे -सहमे? उसने हिम्मत जुटायी समूह के पास जाकर उसने नकाब हटाया कहना तो वो बहुत कुछ चाह रही थी मगर रूंधे गले से यही कह पायी- चाचाजी ये मेैं हूँ आप ही के घर की इज्जत! जवाब सुन चारों और सन्नाटा पसर गया।
शकुन्तला पालीवाल
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