Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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दीन-हीन मजबूर, हुए बार-बार हम

 

घनाक्षरी

 

 

दीन-हीन मजबूर, हुए बार-बार हम ,फिर भी है आज मेरी,एक पहचान है ।

खून देके शूर वीर, हरते पराई पीर,हो रहा है आज नित ,ज्ञान का विहान है।

जल थल वायु और, शशि रवि मेंघ तारें,सब पे विजयी हम, खोजा आसमान है।

राम से चला ये देश, आन बान शान लिए, जग में है एकमात्र,भारत महान है।

छोटी सी उमर में जो कर गए बड़े काम, लाडलों की ऐसी जिंदगानी को प्रणाम है ।

ईंट का जवाब देते पत्थरों से ऐसे वीर,बांकुरोें की खून की रवानी को प्रणाम है ।

शत्रु के समक्ष नहीं खोया बल साहस को, शेखर सुभाष की जवानी को प्रणाम है ।

लाल बाल पाल और मंगल तिलक नाना, बार-बार झांसी वाली रानी को प्रणाम है ।

 

 

 

Shailendra Deepak Patel

 

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