बाल दिवस विशेष
(बच्चों की मस्ती)
हम बच्चों की
यारी ऐसी,
देखत देशी
और विदेशी |
मन करत है हमका
दिन भर
खेले खेल,
मस्ती करत डांटन
जो आए उसको
हो जाए जेल ।
मस्ती का दिन
इक रविवार ही
आता है,
जो सुबह जल्दी
से हमको
जगाता हैं।
हंसी ठिठोली
मौज मस्ती की
पूरी दुकान लग
जाती हैं,
यही सभी बच्चों
के मन को
भाती हैं।
छुट्टी का दिन
बीत गया पूरा
न होता हमारा
खेल,
पर जब मम्मी
बुलाने आए तो
बन जाए हम
सब की रेल।
युवा साहित्यकार / अध्यापिका
शालू मिश्रा
नोहर(हनुमानगढ)
रा.बा.उ.प्रा.वि.सराणा
(जालोर)
ईमेल-
shalumishra6037@gmail.com
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