स्वाईन फ्लू से पीड़ित गाँव वालों ने रोगियों की सुविधा हेतु एक विशेष भवन के निर्माण करने का निर्णय किया। जिसमें बीमारी की जाँच के साथ निशुल्क दवाईयों की व्यवस्था हो ताकि गाँव के गरीब व्यक्तियों को मुफ्त ईलाज की सुविधा मिल सके। सभी ग्रामीणों ने धन संग्रह करने का निश्चय किया। गाँव के ही एक धनिक के पास भी चन्दा लेने हेतु लोग पहुंचे। सभी ने अनुनय विनय के साथ कुछ धन राशि दान स्वरुप देनें का निवेदन किया तो उस धनिक का उत्तर था ‘‘ मेरा तो एक ही बेटा था और वह भी इस बीमारी से भगवान को प्यारा हो गया। अब मुझे पैसा देनें का औचित्य नहीं रहा। लोागों ने कहा गाँव के दूसरों पर तो दया करो। गरीबों का भला होगा आपके बेटे की आत्मा को शांति मिलेगी। कुछ तो विचार करो सेठजी। आप गाँव के सेठ हैं, मालिक हैं उदारता पूर्वक दान देकर पुण्य कमायें। इससे कई गरीबों की प्राण रक्षा होगी और आपको भी इसका फल मिलेगा। लोगों के इस विनम्रता पूर्वक निेवदन को ठुकराते हुए कह दिया कि आप लोग मुझसे कोई आशा नहीं रखे। तभी समूह के मुखिया ने कहा, भाईयों! चलो यहाँ से यह सेठ तो इतना गरीब हैं कि इसके पास पैसे के अलावा कुछ भी तो नहीं है।
शंकर लाल माहेष्वरी
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