Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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सहयोग

 

शहर की तंग अंधेरी गली से एक आदमी की चीख सुनाई पड़ी। वह व्यक्ति ‘‘बचाओ,बचाओ’’ चिल्लाकर किसी की सहायता चाह रहा था। उसकी दर्द भरी कराह की चीख सुनकर चैराहे पर खड़ा हुआ एक व्यक्ति दौड़कर उस अंधेरी गली में पहुंचा तो देखा कि एक बलशाली पुरुष एक असहाय निर्बल व्यक्ति, जो पेट के बल खड़ा हुआ था, उसकी पीठ पर वह बैठा हुआ घूँसे मार रहा था। यह दृश्य देखकर उसे दया आ गई। उसने घूँसे मारने वाले व्यक्ति को हाथ पकड़कर जोर ये खींचा और पेट के बल पड़े व्यक्ति को उससे छुटकारा दिलवाया। छूटते ही वह व्यक्ति तेजी से भागते हुए गली को पार कर अदृश्य हो गया। उसके छूट कर भाग जाने की स्थिति देखकर उस व्यक्ति ने कहा। महाशय ! उस व्यक्ति ने मेरी जेब काटकर पचास हजार रुपये पार कर लिए थे इसीलिए मैं उसे पकड़कर रुपया निकलवा रहा था। आपके सहयोग से वह रुपया लेकर भाग गया। मुझे आपने बहुत नुकसान पहुँचाया। यदि आप सहायता के लिए नहीं आते तो मुझे खोया हुआ पैसा मिल जाता।
आपने उसे जेब कतरे की सहायता करके शुभ नहीं किया। वस्तुतः हमें शुभ और अशुभ का आकलन करते हुए ही किसी की सहायता करनी चाहिए वही सही अर्थों में सच्चा सहयोग होगा।

 

 

शंकर लाल माहेष्वरी

 

 

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