रामधन का बड़ा बेटा रोहित उस समय बारहवीं कक्षा में पढ़ता था। वह बड़ा प्रतिभाशाली था इसीलिए बोर्ड परीक्षा में राज्य स्तर पर प्रथम स्थान अर्जित कर उसने एक कीर्तिमान स्थापित किया था। पिता रामधन उसे डाक्टरी की पढ़ाई के लिए विदेश के किसी अच्छे काॅलेज में प्रवेश दिलाना चाहता था। अपनी प्रतिभा के कारण रोहित का प्रवेश एक ख्याति प्राप्त काॅलेज में हो गया। अच्छा मुहुुर्त देखकर जाने की तैयारी कर ली। माता-पिता ने खुशी-खुशी बेटे रोहित को गाँव के बस स्टेण्ड तक पहुंचाया। उस समय रोहित का सारा सामान पिता अपने सिर पर रखकर ले जाने लगे तो रोहित ने पिता को सामान नहंी उठाने दिया स्वयं अपने सिर पर बोझा रखकर ले गया। रोहित की इस विनम्रता और सेवा भावना से रामधन की छाती फूल गयी उसके मुंह से निकल गया ‘‘बेटा हो तो ऐसा’’।
रोहित लम्बे समय तक विदेश ही में रहा। खूब मेहनत की, डाक्टरी की पढ़ाई पूरी हो गई। पिता रामधन फूले नहीं समाये। सोचा, अब बेटा मेरे बुढ़ापे का सहारा बनेगा, सेवा करेगा और मेरा बोझ हल्का हो जायेगा। डाक्टर बनकर रोहित अपने गाँव आया। माता-पिता उसकी अगवानी के लिए बस स्टेण्ड पर गये। बस से रोहित उतरा तो उसके पास अटेची और एक पुस्तकों से भरा हुआ थैला था। पिता नेे सिर पर अटैची रख गले में थैला लटकाये घर की और प्रस्थान किया। रोहित आगे आगे चल रहा था और पिता पीछे पीछे। लोगों ने पिता को रोहित का बोझा लाते देखा तो वह दिन याद आ गया जिस दिन वह डाक्टरी पढ़ने के लिए शहर गया था तब यह बोझा बेटे के सिर पर था किन्तु ऊँची पढ़ाई के बाद आज वही बोझा बाप के सिर पर हैं। लोगों के मुंह से निकल गया ‘‘कैसी विडम्बना हैं यह?
शंकर लाल माहेश्वरी
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