,,कुन्डलिया ,,,,,,,,,,,, ,,,,,,,
अज्ञानी। भटकत फिरे , दिखते चारो ओर ।
चुंगल मे फँस फँस रहें , रुचै नर्क की खोर।।
रुचै नर्क की खोर , जानते फिर भी दौरे ।
करते अंधविश्वास , संतो से जम के खौरे ।।
अविनाशी बिन ज्ञान के,खुशी, ब्याधि लपटानी ।
चौरासी को ललसते , जान लेहु अज्ञानी।।
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