Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

डा० देवीदीन अविनाशी

 

 

agyani

 

  • ,,कुन्डलिया ,,,,,,,,,,,, ,,,,,,,
    अज्ञानी। भटकत फिरे , दिखते चारो ओर ।
    चुंगल मे फँस फँस रहें , रुचै नर्क की खोर।।
    रुचै नर्क की खोर , जानते फिर भी दौरे ।
    करते अंधविश्वास , संतो से जम के खौरे ।।
    अविनाशी बिन ज्ञान के,खुशी, ब्याधि लपटानी ।
    चौरासी को ललसते , जान लेहु अज्ञानी।।

 

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ