Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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जो अलमारी में हम अख़बार के नीचे छुपाते हैं

 

जो अलमारी में हम अख़बार के नीचे छुपाते हैं,

वही कुछ चन्द पैसे मुश्किलों में काम आते हैं.


कभी आंखों से अश्कों का खजा़ना कम नहीं होता,

तभी तो हर खुशी हर ग़म में हम उसको लुटाते हईं.


दुआएं दी हैं चोरों को हमेशा दो किवाडों ने,

कि जिनके डर से ही सब उनको आपस में मिलाते हैं.


मैं अपने गांव से जब शहर की जानिब निकलता हूं,

तो खेतों में खड़े पौधे इशारों से बुलाते हैं.


शरदग़ज़लों में जब भी मुल्क की तारीफ़ करता है,

तो भूखे और नंगे लोग सुन कर मुस्क्राते हैं.

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