(१)
जरा देर तक ये, सबां में उड़ता है,
टूटा हुआ पत्ता , जमीं पर गिरता है ।
(२)
फ़लक ये पलक का, गिर कर उठता है,
नज़र से गिर कर , फिर ना उठता है ।
रवीन्द्र कुमार गोयल
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(१)
जरा देर तक ये, सबां में उड़ता है,
टूटा हुआ पत्ता , जमीं पर गिरता है ।
(२)
फ़लक ये पलक का, गिर कर उठता है,
नज़र से गिर कर , फिर ना उठता है ।
रवीन्द्र कुमार गोयल
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