सबसे बढकर दुनिया मेँ मुझको है बेटी प्यारी,
अब तो है वो मेरे पूरे घर की राज दुलारी ॥
जन्म हुआ जब उसका सबने अपना मुँह बिचकाया
जाने क्योँ मेरे घर मेँ इक मातम सा था छाया,
लेकिन जब सबके सम्मुख गोदी मेँ उसको लाये,
उसका सुन्दर रूप देखकर सबका मन भर आया ।
सरगम सी लगती थी सबको उसकी हर किलकारी ॥
वो मयूर के पँखोँ का एहसास दिला जाती थी,
फूलोँ की पँखुडियोँ का आभास करा जाती थी
उसके नन्हे अँगोँ को जब जब भी सहलाते थे
उसके मुख पर चन्द्र किरण सी आभा छा जाती थी ।
फूली नहीँ समाती थी तब उसकी भी महतारी ॥
जैसे तितली उपवन मेँ हर फूलोँ पर मँडराये
इक ताज़े गुलाब की खुशबू जैसे घर महकाये
वैसे उसका आना खुशियोँ की सौगाते लाया
दिन भर उससे बतियाने को सबका मन ललचाये ।
आतुर रहते थे सब उसको लेने बारी बारी ॥
लेकिन जब बेटी डोली चढ अपने पी घर जाये
बचपन जिन हाथोँ मेँ बीता पल मेँ हुए पराये,
सभी पराया धन कहकर उसको आभास दिलाते,
कुछ दिन की ख़ातिर ही वो तो बाबुल के घर आये ।
कब बदलेगी चलती आई है जो रीत हमारी ॥
वर्षोँ नाज़ुक कली जानकर जिसको रखा सहेज,
उस अमूल्य धन को पाकर भी माँगे लोग दहेज ,
ऐसे दुष्ट दरिन्दोँ को हम कैसे मानव मानेँ,
कभी जलाते, कभी सताते, वापस देते भेज ।
कहता है इतिहास सदा दुख सहती आई नारी ॥
बेटा हो या हो बेटी सब ईश्वर का वरदान
मगर न जाने क्योँ रहते हैँ हम इससे अनजान,
सबको है अधिकार जगत मेँ समता से जीने का,
बेटी के प्रति भेद जताने वाले हैँ नादान ।
अब तो कई क्षैत्र मेँ हैँ बेटोँ से बेटी भारी ॥
0 शरद तैलँग
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