ना मिल सके,
ना ही दीद हुआ,
खार ज़माने से,
जिगर में तीर हुआ,
अदावत उन्ही से,
कतरा-ए-इश्क़ में,
जिसका जहाँ सारा,
मुद्दतों मुरीद हुआ ।
' रवीन्द्र '
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ना मिल सके,
ना ही दीद हुआ,
खार ज़माने से,
जिगर में तीर हुआ,
अदावत उन्ही से,
कतरा-ए-इश्क़ में,
जिसका जहाँ सारा,
मुद्दतों मुरीद हुआ ।
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