01
अहं का खेल
मुद्दे पाताल में
हम हैं फेल।
02
तू- तू में-में ही
बना लिया कर्तव्य
अपनों ने भी।
03
ऊर्जा खपायी
सालों की पूंजी ज्ञान
पढ़ी पढ़ायी।
04
बुलबुले सा
क्रोध भी हमारा है
लाये हताशा।
05
वाक पटुता
ज्ञानी भी हो अज्ञानी
न संभलता।
06
मतदान भी
जागरूकता से हो
सफल तभी।
07
जाति की नीति
असफल करती
राज औ नीति।
08
चौकीदार भी
चोर-चोर का शोर
इस बार ही।
09
विकास डूबा
जाति वर्ग धर्म में
जन अजूबा।
10
नियम टूटे
अपने अपनों से
पर हैं रुठे।
11
ताला ही ताला
सभा या जुबान पे
फिर फिसला।
उपरोक्त हाइकु मेरे अपने नितान्त मौलिक एवं स्वरचित है’।
04/09/2019
शशांक मिश्र भारती संपादक देवसुधा हिन्दी सदन बड़ागांव शाहजहांपुर 242401 उ0प्र0 941085048@9634624150 ईमेल shashank.misra73@rediffmail.com
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