Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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समसामयिक हाइकु

 

समसामयिक हाइकु

01-

दिन गुलाब

मुरझाते चेहरे

गायब जोश।

02-

दिन दिवस

आकर चले जाते

हम क्या पाते।

03-

प्रेम दिवस

आरम्भ हो गये

थोड़ा हंसलें।

04-

आज दिवस

कल की है तैयारी

बातें परसों।

05-

पाक हंसता

अपनों की वृद्धि से

पराये घर।

06-

आजादी पर्व

जुड़कर जन्मते

हमको गर्व।

07-

तिगड़मबाज

शत्रु को रिझाते

कल या आज।

08 –

भारत देश

कुछ से है अजूबा

गीदड़ी वेश।

09 –

रेश ही रेश

जयचन्द बनेंगे

हमारे देश।

10-

देश की भक्ति

नापने का पैमाना

उनकी शक्ति।

11 –

वह बढ़ते

पांव कीचड़ में डाल

सदा कुढ़ते।

12 –

जले न बुझे

इधर न उधर

मूर्ख अन्धे।

       उपरोक्त हाइकु मेरे अपने नितान्त मौलिक एवं स्वरचित है।    

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