समसामयिक हाइकु
01-
दिन गुलाब
मुरझाते चेहरे
गायब जोश।
02-
दिन दिवस
आकर चले जाते
हम क्या पाते।
03-
प्रेम दिवस
आरम्भ हो गये
थोड़ा हंसलें।
04-
आज दिवस
कल की है तैयारी
बातें परसों।
05-
पाक हंसता
अपनों की वृद्धि से
पराये घर।
06-
आजादी पर्व
जुड़कर जन्मते
हमको गर्व।
07-
तिगड़मबाज
शत्रु को रिझाते
कल या आज।
08 –
भारत देश
कुछ से है अजूबा
गीदड़ी वेश।
09 –
रेश ही रेश
जयचन्द बनेंगे
हमारे देश।
10-
देश की भक्ति
नापने का पैमाना
उनकी शक्ति।
11 –
वह बढ़ते
पांव कीचड़ में डाल
सदा कुढ़ते।
12 –
जले न बुझे
इधर न उधर
मूर्ख अन्धे।
उपरोक्त हाइकु मेरे अपने नितान्त मौलिक एवं स्वरचित है।
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