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मदारी का खेल

 

              मदारी का खेल

जब से सीट सामान्य हुई ।वातावरण में गरमी आ आई।

कई के दिलों से दल निकल प्रधान के सपने बुनने लगा।

रात का चुनावी मौसमईमानदार निर्भीक कर्मठ व योग्य उम्मीदवार आगे आगे भीड पीछे ।

न सोएंगे न सोने देंगे ।अवसर दो कुछ करके दिखाएंगे ।

दूसरी ओर अंग्रेजी वायसराय की तरह कभी कभी गांव आने वालेएक मठाधीश अपनी गोटियां बिछाने लगे।

सीट कैसे भी आरक्षित हो।रात दिन जपते ।

दमखम और पहुंच से रंग जम गया।

सीट आरक्षित हुई ।ग्रामीण कुछ समझ पाते कि जीत हो गई।

गांव में फिर मदारी का खेल और डमरू पर नांच आरम्भ हो गया ।

उपरोक्त y?kqdFkk मेरी अपनी नितान्त मौलिक स्वरचित और अप्रकाशित है।

10/04/2021

शशांक मिश्र भारती संपादक देवसुधा हिन्दी सदन बड़ागांव शाहजहांपुर 0प्र0 242401 मोबा. 9410985048/9634624150 Email shashank.misra73@rediffmail.com

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