शरद पूर्णिमा की गरिमा
शशांक मिश्र भारती
सोलह कलाओं से युक्त चन्द्रमा
जब आकाश में आता
धरती अम्बर बिखरती चांदनी
पर्व शरदपूर्णिमा कहाता।
चन्द्र की चंचलता चारों ओर
रात्रि मानो दूध से नहलाता
जल थल नभ जहां भी दृष्टि
चांदी सा बिस्तर पाता।
मां लक्ष्मी का प्रकटोत्सव है
कोई जन गाकर बताता
राधा कृष्ण ने रास रचाया
यह निशा वही समझाता।
कोजागरी नाम दिया किसी ने
तुलसी को है पूजा जाता
रात को खीर आंगन रख
लाभ अमृतवर्षा का उठाता।
कहते मां लक्ष्मी का दिन है
जब धरती की ओर आना
सभी जनों को स्नेह लुटाना
रात खीर का भोग लगाना।
यह महर्षि वाल्मीकि का दिन
धरा को पावन कर डाला
रचा सृष्टि का प्रथम छन्द
आरम्भ कवियों की माला।
राम चरित हृदय में रखकर
रामायण महाकाव्य बनाया
जन-जन का कण्ठाहार चरित्र
जन जन तक है पहुंचाया।
शरदपूर्णिमा की गरिमा सदा
यूं ही जाती रही है गायी
राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त
कालिदास ने है बतलायी।।
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