शशांक मिश्र भारती
आज हिमालय बोल उठा है
इस देश के भ्रष्ट कर्णधारों से,
सावधान!यह भूमि नहीं है-
विहीन अभी राष्ट्रदुलारों से।
संस्कृतियों का अमर दुर्ग
यहां हिन्दुस्तान खड़ा है,
सभी को छत्र एक है देता
रामकृष्ण का वरदान बड़ा है।
है किसमें पौरुष इतना जो
इस धरा पर आंख गड़ायेगा,
कौन है मां का लाल निराला
भारत सपूतों से टकरायेगा।
जाति-पाति और धर्मवाद को
और अधिक आवाज न दो,
फिर गुलाम हो जायें हम सब
ऐसा किसी को ताज न दो।
स्मरण करो गोविंद-शिवा की
शौर्य पूर्ण गाथाओं को,
हल्दीघाटी में गूंज रही हैं
चेतक की उन टापों को।
संकट के जब बादल घिरे हों
देश की सभी सीमाओं पर,
धिक्कार! है उन मां के बेटों पर
जो सो रहे स्वार्थ की शैय्याओं पर।
अगर हमारी युवा पौरुषता
देश के हित में चूकेंगी,
आने वाली अगली पीढ़ियां
निश्चय ही हम पर थूकेंगी।
इसीलिए हे युवाओं न मोड़ो
मुख राष्ट्र की करुण पुकारों से,
भारत के वीर सपूतों जागो-
क्रांति करो सत्य के विचारों से।।
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