बहुत पहले की बात है कि नन्दनवन के समीप कृपाल सिंह नाम के एक राजा राज्य करते थे। वह बड़े ही पराक्रमी बलशाली और प्रजा प्रिय थे। उनके राज्य में प्रजा सभी प्रकार से सुखी थी। राज्य भी सुखी और सम्पन्न था। राज्य की सुरक्षा के लिए एक बहुत बड़ी सेना थी। हालांकि पड़ोसी राज्यों से मित्रता के चलते सेना की आवश्यकता नहीं पड़ती थी।
राजा में एक बुराई थी। वह प्रतिदिन ही शिकार के लिए निकलता था। पीछे से उसकी विशाल सेना भी चलती थी। जिसे न केवल बड़ी संख्या में जंगली जानवरों का विनाश होता था। वरन् जंगल की वनस्पतियां भी पैंरों तले कुचलकर नष्ट हो जाती थी। राजा के साथ-साथ उसके सैनिक भी जानवरों और पक्षियों का अन्धाधुन्ध शिकार करते थे।
एक समय में जहां हिरन चीता भालू शेर हाथी सुअर खरगोश आदि जानवरों व असंख्य पक्षियों से जंगल गुंजायमान रहता था। अब आवाजें कम होती जा रही थीं। पेड़- पौधे भी कम हो गये थे। लेकिन जानवर असहाय और लाचार थे। चाहते हुए भी कुछ नहीं कर पा रहे थे। पक्षियों के झुण्ड भी डालियों पर बैठकर आंसू बहाने के लिए विवश थे। सभी अपने जीवन को लेकर सदा भयभीत रहते थे कि पता नहीं कब किसका सामना शिकारियों से हो जाये।
उन्हीं दिनों नंदनवन के जंगल में सन्तोष और सुखी नाम के हिरनों के जोड़े के साथ उसका पुत्र उपकारी भी रहता था वह देखने में भी बड़ा ही सुन्दर और मनमोहक था। जो भी उसे देखता प्रभावित हुए बिना न रहता। उसका स्वभाव भी बड़ा अच्छा था। चंचलता तो जन्मजात थी। उसको जंगल में इस तरह के विनाश से बड़ा कष्ट पहुंचता। घण्टों एकान्त में बैठकर सोचा करता था लेकिन वह करता क्या सोचता कहीं एक दिन यह सब कुछ नष्ट न हो जाए। तब प्रकृति-मानव के मध्य सन्तुलन का क्या होगा।
उसने जंगल के सभी जानवरों की एक सभा बुलाई। सभा में सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया गया कि यदि हममें से एक जानवर प्रतिदिन राजा के पास जाये तो रोज-रोज राजा के द्वारा किया जाने वाला भयंकर विनाष रुक जायेगा। जंगल में शान्ति रहेगी। पशु-पक्षी और वनस्पतियां भी सुरक्षित हो जायेंगे।
आखिर कार राजा कृपाल सिंह भी इस सबके लिए तैयार हो गये। हालांकि सैनिकों ने दबी जुवान में इसका विरोध किया। लेकिन राजा के सामने खुलकर न कह सके। तब से प्रतिदिन एक जानवर राजा के पास आने लगा। राजा को भी शिकार पर जाने से छुट्टी मिल गयी। वह भी प्रसन्न और जंगल के सभी जानवर भी प्रसन्न। राज्य के साथ-साथ जंगल में भी सुख-शांति का वातावरण फैल गया।
महीनों यही क्रम चला। इस बीच कुछ सैनिकों ने चोरी छिपे जंगल में उधम मचाया लेकिन राजा के कानों तक शिकायत न पहुंच सकी। एक दिन उस उपकारी हिरन का भी नम्बर आ गया। वह राजा के सामने पहुंचा तो उसकी सुन्दरता सज्जनता और भोलेपन ने राजा को बड़ा प्रभावित किया। वह देखने में इतना मग्न हो गये कि उन्हें याद ही न रहा कि यह उनके समीप शिकार हेतु आया है। समय अधिक बीत जाने से उपकारी बोला-
‘‘ राजन! आप मुझे मारते क्यों नहीं
हे हिरन! तुम्हारी सुन्दरता ने मुझ पर जादू कर दिया है। मेरी समझ में नहीं आ रहा है। क्या करूं राजा ने कहा।
महाराज मेरी सुन्दरता का जादू आप पर कब से चढ़ गया। मेरे जैसे कितने आप के पास आये होंगे।
नहीं! नहीं!! हिरन तेरे जैसा जादू किसी में नहीं मैं तुम्हारी आयु नहीं छीन सकता। तुम्हें अपनी आयु पूरी करने का अधिकार है। राजा बोले
तो क्या राजन मुझे ही यह अधिकार है। जंगल के दूसरे हिरनों व अन्य जानवरों को नहीं। उनको आपका अभय दान नहीं मिल सकता हिरन ने कहा।
हां अवश्य मिल सकता है। मैं सबको दूंगा यही नहीं मैं आसमान में उड़ने वाली चिड़िया को भी अभय करूंगा नदियां तालाबों में मछलियों को भी पूर्ण अभय कर दूंगा। राजा ने विश्वास दिलाते हुए कहा।
उसके बाद उपकारी हिरन को राजा ने वापस लौटा दिया।
कहा जाता है कि कुछ दिनों के बाद राजा कृपाल सिंह ने अपने सम्पूर्ण राज्य में घोषणा करवा दी, कोई किसी पशु-पक्षी का शिकार नहीं करेगा। राज्य में किसी प्रकार की ंिहंसा नहीं होगी। देखते ही देखते राजा के साथ-साथ पूरा राज्य भी अहिंसावादी बन गया।
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY