Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

अनोखा नगर

 

शशांक मिश्र भारती

 

 

मैं अपने विमान से धीरे-धीरे जमीन पर उतरा। आस-पास दश्ष्टि डाली। वातावरण में हरियाली थी।पक्षियों का कलरव सुनाई पड़ रहा था। आगे बढ़ा तो कदम बढ़ते ही चले गये।
एक स्थान पर पहुंचकर देखा-सब कुछ आश्चर्य जनक! जिधर दश्ष्टि डाली-उत्तर-दक्षिण पूरब-पश्चिम। वृक्षों की पत्तियां आधी काली आधी पीली हो रही थीं। अधिकांश फलों पर काले रंग के धब्बे थे। फूलों का रंग भी अनोखा हमारी धरती से बिल्कुल अलग सा देखने मे। मैदान पर घास हरे रंग की न होकर नीले रंग की थी। कहीं-कहीं पर पत्तों रहित झाड़ियां भी उगी थीं। पशु-पक्षियों की मिली-जुली आवाजें आ रही थीं। इस आवाज में वह जादू न था जो हमारे यहां की आवाजों में था। कई बार आवाजें स्वाभाविक कम कराहने जैसी अधिक लग रहीं थी।
कुछ आगे बढ़ने पर एक बस्ती आ गई। वहां पहुंचने पर देखा-‘‘कि बस्ती के सारे मकान कंकरीट लोहे और सीमेण्ट के बने हुए हैं। लकड़ी व मिट्टी का बिल्कुल प्रयोग नहीं था। कुछ लोग भी दिखलाई पड़े। वह आपस में बात-चीत कर रहे थे। मुझे देखा तो पास आकर खड़े हो गये। एक ने कुछ पूछा- जो मेरी समझ में न आया। मैंने उससे नगर के बारे में-जानना चाहा; तो उनमे से एक ने अपनी जेब से कुतुबनुमा जैसा कोई यंत्र निकाला और फिर बोला- ‘‘आओ, मेरे साथ आओ! नगर दिखलाता हंू।
वह मेरी प्रत्येक बात का जबाब देता हुआ मेरे आगे-आगे चलने लगा उसने लगभग पूरा ही नगर दिखला दिया। नगर में जनसंख्या बहुत कम थी। प्रत्येक घर सभी अत्याधुनिक सुख- सुविधाओं से सुसज्जित लग रहा था।
नैट टाप-लैप टाप का प्रयोग तो कई वृद्ध थैले की भांति लटकाये करते दिख चुके थे। एक स्थान पर बहुत बड़ा कूड़े का ढेर सा लगा था।उंगली से इशारा करते हुए उसने बतलाया- देखो वह कम्प्यूटर-मोबाइलों का ढेर है। ऐसे ढेर जगह -जगह पर हैं।कोई बिना पैसे भी नहीं ले जा रहा है।
पानी कहीं न दिखलाई पड़ा पेड़-पौधे भी नहीं दिखे; पृथ्वी की भांति घरों में या आस-पास पशु-पक्षी भी न दिखे।वहां पर किसी तरह की आवाजें भी न थी। जो एक-दो लोग दिखे डरे और सहमे से धीरे-धीरे बोल रहे थे।

 

-मैंने उसी व्यक्ति से पूछा- कैसा अनोखा नगर है स्त्रियां बच्चे और युवा कहां गये इतनी सारी सुविधायें फिर भी यह सन्नाटा! आस-पास का रंग-ढंग बदला-बदला सा।
उसने कुछ देर मेरी ओर देखा फिर बोला-
‘‘यहां आपकी धरती से कहीं अधिक सुख-समृद्धि थी।सभी लोग प्रसन्नता पूर्वक अपना कार्य करते थे। प्रयेक घर के सामने एक पानी सुरक्षित रखने का छोटा सा तालाब व वृक्ष अवष्य था। सड़कों के दोनों ओर घने-घने फलदार वृक्ष थे। बीच- बीच में गोलाकार फूलों के छोटे-छोटे बगीचे भी बनाये गये थे। प्रत्येक क्षण बालकों की आवाजें पशु-पक्षियों की आवाजों के साथ मिलकर मधुर संगीत का आनन्द दिलाती थी। लेकिन..................।

 

अचानक वह शांत हो गया और इधर-उधर देखने लगा क्या बात है रुक क्यों गये आगे बतलाओ मैंने पूछा
‘‘यहां के लोगों ने बड़ी उन्नति की।विज्ञान कृषि दूर-संचार सूचना-प्रौद्योगिकी उद्योग-धन्धे आदि क्षेत्रों में इतना आगे बढ़े कि हाथ से करने को कोई कार्य न रह गया।घरों में झाड़ू-पोंछा लगाने साग-सब्जी काटने लाने के लिए यंत्र मानव बना दिये गये। किन्तु यह सब कुछ वर्षों तक ही ठीक-ठाक रहा।स्वाभाविक जीवन को यंत्रवत् बनाने वाले लोग प्रकृति को भूल गये।एक सौ डेसी वल से अधिक आवाज से कार्य करने वाले सभी यंत्रों ने यहां के निवासियों की श्रवण शक्ति समाप्त कर दी।गन्दे पदार्थों मल-मूत्र कूड़ा-करकट आदि के निरन्तर बहते रहने से पहले जल प्रदूषित हुआ। फिर धीरे-धीरे लुप्त हो गया।वनस्पतियां विकृत हो-हो कर नष्ट होने लगीं।
यहां रहने वालों में भी नाक कान आंख गले फेफड़े व आंत्रस्रोथ की बीमारियां फैलीं। धीरे-धीरे सब कुछ नष्ट हो गया। आकाश में भी ग्रीन हाउस गैसों के बढ़ते प्रभाव व जलवायु परिवर्तन ने वायुमण्डल को गरम कर दिया। पहले कुछ दिनों तेजाब की वर्षा हुई। फिर वह भी बन्द हो गई। धरती का तापमान कई गुना बढ़ गया।आज परिणाम आपके सामने है।हम सबकी अतिसम्पन्नता कालकलवित हो विपन्नता में बदल गयी और हम दो-चार लोग भी कब तक जीवित रह पायेंगे।

 

मैं इसके आगे कुछ न सुन पाया और अपनी धरती के बारे में सोचने लगा-‘‘यदि हमारी धरती पर विकास की गतिविधियों के साथ-साथ पर्यावरण सन्तुलन ग्रीन हाउस प्रभाव और जलवायु परिवर्तन पर ध्यान न दिया तो हमारा भविष्य भी उस अनोखे नगर की तरह होने से कोई रोक न पायेगा। हां कोई भी नहीं!!

 

 

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ