बालक का जन्म लेना ही संघर्ष का नाम है,
घर -गली -गांव हर जगह यह आम है ।
कुछ जी रहे हैं दामन में दाग लगाकर ,
कुछ दिए कर जीवन ही बदनाम हैं।
कभी रुक न सका है जीवन यात्रा का सफर,
मोड़ आते गए बनी उलझनें अर्द्धविराम हैं।
पिसते रहे जीवन भर जिनको हम सब,
कल तक नमक हलाल थे अब नमक हराम हैं।
जिन्दगी जीते हुए देखे हैं पषु -पक्षी भी,
पर निर्दयी मनुष्य ही मचाता कोहराम है।
अन्य प्राणियों में वर्ग विभाजन न शशांक
मानव बनाये जसवीर, रहीम तो कहीं राम है।
शशांक मिश्र ’भारती’
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