Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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2. क्षणिकाएं

 

1-
हम सभी तो
आतंकियों से बचे
प्रकृति से नहीं।
2
प्रफुल्लता
धूल में मिल गई
लापरवाही।
3
धूल चाटती
फाइलों का आदेश
भूकम्पोंपरान्त।
4
व्यथित सब
जड़ और चेतन
द्वारिका धीश।
5
हर्ष-विषाद
प्रकोप प्रकृति का
अथवा योग।
6
सुबह-हर्ष
विषाद कम्पन से
शोक से डूबा।
7
ताण्डव क्रूर
महज संयोग से
दोषी मानव।
8
पुनः चेताया
श्रेष्ठता दी हमने
श्रेष्ठ कौन?
9
विखरा सब
अति आतुरता
अहं कारण।
10
उड़ेंगे गिद्ध
सुविधाओं से बद्ध
आदत जन्य।
11
तुम बदले
हम सब बदले
लेकिन क्यों?

12

पदोन्नति को
खोज किसकी रही
सुविधा शुल्क।

13
नेता सो फेल
राजनीति का खेल
स्वार्थी कुर्सी पे।

14
हम बदले
वो भी बदल गए
भ्रष्टता वहीं।

15
व्याप्त कुहासा
भास्कर अदृश्य
राज औ नीति।

16
जाग्रत हुए
स्वार्थ साधने को
दांव-पेंच से।

17
उतारा कर्ज
स्वलाभ करके
तंत्र ने जन का।

18
बहादुर थे
शिकार शेर का
चूहे से दुबके।

19
उन्नति की
सरकाते ही रहे
जो बीता वर्ष।

20
पीड़ित जन
अपनों से अधिक
न कि परायों से।

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