शशांक मिश्र भारती
आज समाज में व्याप्त देखो
दहेज के दुर्गुण अपार हैं,
नव बधुएं पिस रहीं निरन्तर-
लोभी जोकों की भरमार है।
अशिक्षा-रुढ़िता का लाभ उठा
कुरीतियां नित्यप्रति बढ़ती हैं,
दहेज प्रथा की बलिवेदी पर
जाने कितनी नववधुएं चढ़ती हैं।
समाज-देश बढ़ रहा प्रगति पर
पर नववधुओं पर अत्याचार है,
अशिक्षा-अन्धविश्वास से ही
वह पड़ जाती सभी से लाचार हैं।
इसीलिए यह प्रश्न उठरहा है
दहेज प्रथा से क्यों देश जल रहा है,
क्या नहीं हुईं अग्नि परीक्षाएं पूर्ण
जे निसिदिन इनको जला रहा है।।
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