Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

ग्रीष्म ऋतु

 

शशांक मिश्र ‘‘भारती’’

 


स्वागत्
ग्रीष्मऋतु
तेरे आने से
अत्यधिक तप्त सूर्य की किरणों के कारण
सूखने लगे हैं जलाशय,
गिराने लगे हैं पत्तियां पेड़-पौधे
अपनी रक्षा के लिए
तेरे आने पर
झुलसने लगी हैं
कोमल पुष्पों की पंखुड़ियां,
एक मात्र आश्रय है
वृक्षों की शीतल छाया
आम्र फलों से लदे विटप
बिखेरते हैं सौन्दर्य तेरा
वे भी अपनी
सुन्दरता के द्वारा
तेरा स्वागत करते हैं,
जिनसे-
नवीन प्रसूनों का जन्म होता है
तेरी भीषणता में
तुझको सहन कर
जीवित रहने के बाद
मेरी पावन ग्रीष्मऋतु,
शरद-बसन्त को छोड़कर पीछे
भीषण गरमी को लेकर आयी,
जिससे
मुक्त नहीं चर-अचर कोई भी
तुझसे व्यथित हो
आश्रय पाते हैं सिर्फ-
जल और शीतल छाया का
ग्रीष्मऋतु।

 

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ