हमने जब से देखा है तुमको याद आने लगे
क्या करे किस्मत के दरिया में जो हम नहाने लगे।
नजरो के मिलते ही सभी कुछ बदला पाया
चाहा नहीं कुछ भी फिर क्यों बहाने लगे।
था खास कुछ जरूर तुममें मेरे लिए
क्या फिक्र थी मुझे यूंही जो है सताने लगे।
हिरन सी आंखें शुक सी नासिका को समझ
बनकर के भ्रमर ज्यों हैं मंडराने लगे।
हुस्न ही नहीं ख्यालात भी पाये आप में
तन ही नहीं व्यथित मन भी अकुलाने लगे।
आतुरता जो बढ़ी पल भी है वर्षों में बीता
स्वप्न रात के यहां दिन में नजर आने लगे।
आपसे मिलने का हमे इन्तजार था कब सs
नजर मिली पहली थी जब से सताने लगे।
वैचारिकता का सन्तुलन बना जो भारती
स्वप्नों से निकल राग यंू ही हैं गाने लगे।
शशांक मिश्र ’भारती’
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